कषाय स्वयं ऐसी भयंकर आग है जोआत्मा के सद्गुणों का विनाश कर देती है।कषाय साधक के तन-मन और वचन को संतप्त, व्याकुल एवं अशान्त कर देती हैं। जब तक कषाय जीव के साथ संलग्न है तब तक संसार में गमनागमन जारी रहता है। क्रोध-मान-माया और लोभ ये चार कषाय हैं जो मन-वचन-काया की चंचलता को बढ़ाने वाले एवं कर्मों को आकर्षित करने वाले ‘आश्रव’ भी हैं तथा कर्मों को टिकाकर रखने वाले ‘बन्ध’ का कारण भी है।
क्रोध रोजमर्रा जीवन की ज्वलन्त समस्या है। इसका द्वेष, ईर्ष्या या वैर और उद्विग्नता से गहरा सम्बन्ध है। एक क्षण भर का किया हुआ प्रबल क्रोध, करोड़ पूर्व वर्षों में अर्जित तप को नष्ट कर देता है।
जीवन की मूलभूत समस्या अहंकार है जो मनुष्य को अंधा बना देती है। मान (अहंकार) आत्म-गुणों का घातक है। भगवान महावीर ने कहा मान से व्यक्ति अधम गति, अधम जाति एवं अधम कक्षा में पहुँच जाता है।तात्पर्य यह है कि क्रोध आत्मा के प्रीतिगुण का नाश करता है, मान विनय गुण का, माया
मैत्री का और लोभ व्यक्ति की समस्त विशेषताओं को नष्ट कर देता है।