श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ राजाजीनगर बैंगलोर के तत्वावधान में उप प्रवर्तक पंकजमुनि के सानिध्य में डॉ वरुणमुनि ने पर्युषण महापर्व के द्वितीय दिवस कहा कि यह संसार अनादिकाल से है और अनंतकाल तक रहेगा ।
जैन कालचक्र दो भाग में विभाजित है : उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल। अवसर्पिणी काल में समयावधि,हर वस्तु का मान,आयु,बल इत्यादि घटता है जबकि उत्सर्पिणी में समयावधि,हर वस्तु का मान और आयु, बल इत्यादि बढ़ता है।
उन्होंने कहा कि पर्युषण महापर्व मात्र जैनों का पर्व नहीं है, यह एक सार्वभौम पर्व है। पूरे विश्व के लिए यह एक उत्तम और उत्कृष्ट पर्व है, क्योंकि इसमें आत्मा की उपासना की जाती है। संपूर्ण संसार में यही एक ऐसा उत्सव या पर्व है जिसमें आत्मरत होकर व्यक्ति आत्मार्थी बनता है। अंतकृतदशांक सूत्र का वांचन आठ कर्मों को काटने के लिए आठ दिनों के लिए होता है। कल्पसूत्र जैन धर्म का सबसे महत्वपूर्ण शास्त्र है। कल्पसूत्र में 24 तीर्थंकरों के जीवन चरित्र का वर्णन है। प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव से लेकर भगवान महावीर तक साधुओं के प्रायश्चित कर्म में जड़, वक्र एवं सरल बुद्धि का वर्णन है। तीर्थंकर भगवान का जन्म भी कल्याण रूप और निर्वाण भी कल्याण रूप होता है। सूत्र में जैन आचार्यों के जीवन चरित्र का वर्णन के साथ श्रावक-श्राविकाओं की पवित्र जीवन शैली का वर्णन भी किया गया है। और इसमें साधुओं के आचार विचार की भी जानकारी मिलती है। कल्पसूत्र जैन धर्म का पवित्र ग्रंथ है। कहा जाता है कि कल्पसूत्र की रचना करने भर से जैन समाज का इतिहास अमर हो गया है। कल्पसूत्र के रचयिता भद्रबाहु हैं। आठ दिवसीय पर्यूषण पर्व के समय जैन साधु एवं साध्वी कल्पसूत्र का पाठ एवं व्याख्या करते हैं।
पूर्व में रुपेशमुनि ने अंतगड़दशांक सूत्र का वांचन एवं विवेचन किया। अंत में पंकजमुनि ने मंगलपाठ प्रदान किया।
अष्टदिवसीय नवकार महामंत्र अखंड जाप गतिमान है। इस अवसर पर बैंगलोर के विभिन्न क्षेत्रों से श्रद्धालुगण उपस्थित हुए। अध्यक्ष प्रकाशचंद चाणोदिया ने आभार व्यक्त किया और संचालन संघ महामंत्री नेमीचंद दलाल ने किया।