Sagevaani.com /माधावरम्: जप की महिमा का वर्णन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या डॉ साध्वीश्री गवेषणाश्री जी ने कहा कि सभी धर्मों में मंत्र जप की परम्परा रही है। प्रत्येक अक्षर मंत्र है। पुनरावर्तन से सामर्थ्य प्रकट होता है। मंत्र और साधक दोनों में तादाम्य जुड़े तो वह फलवान बनता है। जप क्यों करे, कैसे करे, कब करें? यह भी जानना आवश्यक है। जप के पीछे प्रायः 3 उद्देश्य है, देवाराधन, विघ्न निवारण, आत्माराधन।
साध्वीश्रीजी ने कहा कि हमारा मूल लक्ष्य निर्जरा का हो। भगवान महावीर की जितनी भी साधना थी, वह नर्जरा का लक्ष्य लिये हुआ था। कर्मों को खपाना है उसके जप भी एक साधन है।
साध्वी श्री मयंकप्रभाजी ने कहा कि भगवान महावीर की वाणी के अनुसार चार चीजों पर विजय पाना बड़ा दुर्लभ है- गुप्तियो में मनोगुप्ति, इन्द्रियों में रसनेन्द्रिय, व्रतो में ब्रह्मचार्य व्रत और कर्मो में मोहनीय कर्म पर विजय पाना मुश्किल है।
साध्वी श्री मेरुप्रभाजी ने कहा- जप शब्द दो अक्षरों से बना है, पर इन दोनों का भी बड़ा महत्व है। जकार का अर्थ जन्म विच्छेद और पकार का पाप विच्छेद करना ही जप है।
साध्वी श्री दक्षप्रभाजी ने कार्यक्रम का कुशल संचालन करते हुए ‘अर्हम जपे.. सुमधुर गितिका का संगान किया। कार्यक्रम की शुरुआत किलपॉक और पुरुषवाक्कम की बहनों के मंगलाचरण से हुआ। साध्वीश्रीजी द्वारा तपस्याओं के प्रत्याख्यान कराये गए। आगामी कार्यक्रमों की सूचना श्री सुरेश रांका ने दी।
समाचार सम्प्रेषक : स्वरूप चन्द दाँती
प्रचार प्रसार मंत्री
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ माधावरम् ट्रस्ट, चेन्नई