Share This Post

Featured News / Featured Slider / ज्ञान वाणी

ऊंचे नीचे कुल में जन्म का कारण गोत्र कर्म: साध्वी संबोधि

ऊंचे नीचे कुल में जन्म का कारण गोत्र कर्म: साध्वी संबोधि

आत्मा को प्रतिष्ठित या अप्रतिष्ठित कुल में जन्म प्राप्त कराने वाला गोत्र कर्म है। ऊँच और नीच कुल का भेद कर्मकृत है, मनुष्यकृत नहीं है। किसी भी व्यक्ति की नीचता या उच्चता के मापदण्ड का आधार धन-सम्पत्ति या सत्ता नहीं है अपितु गोत्र कर्म ही है। इस कर्म की तुलना कुम्हार से की गई है। जैसे कुम्हार छोटे-बड़े अनेक घड़ों का निर्माण करता है वैसे ही आत्मा को ऊँच-नीच गोत्र में पैदा कराने वाला यह कर्म है।

अनीति और अधर्म के कारण जिस कुल ने बदनामी प्राप्त की हो वह नीच कुल है तथा जिस कुल ने सत्य, न्याय, सेवा और त्याग से प्रतिष्ठा प्राप्त ही है वह उच्च कुल है। उच्च कुल में रक्त के संस्कार, खानदानी, सभ्यता – संस्कृति की महत्ता एवं भव्यता के संस्कार मिलते हैं, जबकि नीच कुल में कलह, पापाचरण, बेईमानी और स्वभाव की मलिनता के कुटिल संस्कार विरासत में मिलते हैं।

गोत्र कर्म की इस उच्चता और नीचता का आधार निरहंकार और अहंकार है। नीच कुल के तिरस्कृत जीवन से

बचना हो तो किसी भी जीव का तिरस्कार मत करना और न अपने उच्च कुल के श्रेष्ठ जाति का अभिमान करना। यदि जीवन में नीच गोत्र का उदय हो भी जाए तो न दीन-हीन बनना और न अपने को कोसना अपितु स्वस्थ मन से व समता भाव से उस अवस्था को जीना।

जब जीवन में उच्च गोत्र कर्म का उदय हो तो उन्मत्त मत बनना, क्योंकि मनुष्य अहंकार के जितने निकट होता है उतना ही वह आत्मभाव से दूर चला जाता है। जो अहंकार से दूर रहता है वह सत्य, त्याग आदि आत्मगुणों के निकट जाने का प्रयास करता है।

इसलिए अपने मुख से अपना बखान कभी मत करना। अपनी प्रशंसा और दूसरों की निन्दा करने से नीच गोत्र का बँध होता है। हर पल की जागृति रखते हुए अभिमान से दूर रहने की प्रेरणा लेना ही गोत्र कर्म को जानने का सार है।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar