बेंगलूरू। तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता.शांतिदूत.अहिंसा यात्रा के प्रणेता.महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने कहा कि आदमी को मन में अभय और समता का भाव रहे। गुस्सा एक प्रकार की कमजोरी है जो व्यक्ति को हिंसा की ओर लेकर जाती है। विपरीत परिस्थिति में भी अगर समता का भाव रहे तो इससे सुख भी मिलता है और अच्छा चिंतन आता है।
अच्छे चिंतन से व्यक्ति के जीवन में आलोक आ सकता है। भय और क्रोध शत्रु के समान होते हैं इससे पार पा लिया तो सम्यक विकास हो सकता है। भारत में संत शक्ति और ग्रंथ शक्ति दोनों उपलब्ध है। इससे जीवन के सम्यक विकास की खुराक प्राप्त होती है।
आचार्य प्रवर ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) सरसंघचालक मोहन भागवत की उपस्थिति में राजनीति के विषय में कहा कि राजनीति में भ्रष्टाचार शब्द खत्म हो जाए बस केवल सदाचार रहे तो इससे देश का कल्याण हो सकता है।
भागवत ने कहा कि जहां संतों की कृपा दृष्टि होती है वहां सब कुछ प्राप्त हो जाता है। संत प्रेम और करुणा बरसाते हैं तो वहां पर बार.बार जाने का मन होता है। संतो के पास जाने से बौद्धिक उन्नति से प्राप्त होने वाले सुख से ऊपर आत्मिक सुख की प्राप्ति होती है। संतों का जीवन धर्म ग्रंथ जैसा होता है और उससे हम सभी को सदाचार की प्रेरणा मिलती है।
साध्वीप्रमुखा श्री कनकप्रभाजी, साध्वीवर्या सम्बद्धयशा जी ने भी विचार रखे। आचार्य महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति की तरफ से कृतज्ञता ज्ञापन के क्रम में श्रीमती कांता लोढ़ा, धर्मीचंद धोका, विनोद सेठिया, श्रीमती बिन्दु रायसोनी ने अपनी बात कही। देवीलाल पितलिया एवं कुणाल गादिया ने गीतिका की प्रस्तुति दी। छह वर्षीय बालक कृयांश लोढ़ा ने संस्कृत श्लोकों का पाठ किया।