महापर्व पर्युषण आत्म-जागरण का पर्व है। अपने आप पर अनुशासन का पर्व है। विभाव से स्वभाव की ओर बढ़ने का पर्व है। अपने आपको बाहर से समेटकर भीतर से संलग्न करने का पर्व है। पर्युषण पर्व समग्र कषायों से विरति का संकल्प लेते हुए क्षमा-विनय-सरलता, समता, संतोष और सद्भाव-सौहार्द की अभिवृद्धि करने का पर्व है। सर्वथा विशुद्ध, इस आध्यात्मिक पर्व में आत्म-निरीक्षण, आत्म-चिंतन, आत्म-रमण और स्वभाव-रमण कीऔर जीवन के प्रति विशिष्ट चिंतन जगाने वाले इस पर्व की आराधना पूर्ण सजगता के साथ की जानी चाहिए।
पर्युषण का अर्थ आत्मा के चारों ओर प्रमाद आदि के कारण कर्मों और कषायों का जो कचरा एकत्रित हो गया है, उस कचरे को जलाकर नष्ट कर दे, उस प्रक्रिया का नाम पर्युषण है।
आत्मा के समीप आना, आत्मा के सम्मुख रहना या आत्मा के द्वारा आत्मा का, स्वयं के द्वारा स्वयं का ध्यान लगाना है। अपना ध्यान और ज्ञान करना सचमुच बहुत बड़ी बात है। आज सारा संकट इस बात का है कि आदमी दूसरों का ध्यान करने में निष्णात है, पर उसे अपना ध्यान करने का अवकाश नहीं है। जब तक व्यक्ति स्वयं से नहीं जुड़ता, तब तक उसे जीवन में शांति की अनुभूति नहीं हो सकती।
आज के आदमी को दुनिया भर का ज्ञान है। दुनिया भर से उसका परिचय है पर स्वयं से वह बेखबर है। जब तक वह स्वयं से संलग्न नहीं बनेगा, उसके जीवन की समस्याएँ घटने के बजाय और अधिक बढ़ती चली जाएँगी। पर्युषण पर्व यही संदेश लेकर समुपस्थित हुआ है कि हम अपने आपसे संपर्क स्थापित करें। अपने आपको देखें, परखें एवं जीवन को जीवन के ढंग से जीने का अभ्यास करें।