*श्रीफल की तरह भीतर से कोमल व बाहर से कठोर होते हैं संत*चैन्नई के साहुकार पेठ स्थित श्री राजेन्द्र भवन में आचार्य श्रीजयन्तसेनसूरिजी के सुशिष्य मुनि संयमरत्न विजयजी,श्री भुवनरत्न विजयजी ने “कस्तूरी प्रकरण” के ‘माया-प्रक्रम’ का विवेचन करते हुए कहा कि हमारे जीवन रूपी दूध को माया रूपी विष दूषित कर देती है। पैर में काँटा लगने पर बहुत पीड़ा होती है, किंतु माया तो काँटे से भी अधिक भयंकर होती है, माया जीव को एक-दो नहीं, अपितु सैंकड़ों कष्ट देती है। माया से यह भव तो बिगड़ता है, साथ ही अगला भव भी बिगड़ जाता है।जिस प्रकार विभिन्न फलों के समूह से झुके हुए वृक्ष तो बहुत मिलेंगे, किंतु अपने उत्तम फलों से त्रिजगत को खुश करने वाले कल्पवृक्ष सर्वत्र नहीं मिलते, इसी तरह कपटकला में कुशल प्राणी तो पृथ्वी पर अनेक मिलेंगे, किंतु सुंदरतम सरलता को धारण करने वाले प्राणी बहुत कम ही मिलते हैं।दु...
कोलकाता. कट्टरता क्रूरता की जननी है इससे स्वयं के सद्गुण नष्ट हो जाते हैं। वात्सल्य प्रेम सद्भाव का झरना सूख जाता है। कट्टरता अपने आप में अधर्म और पाप है। विश्व का कोई भी धर्म कट्टरता अपनाने की इजाजत नहीं देता। उक्त विचार राष्ट्र संत कमल मुनि कमलेश ने महावीर सदन में धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहीं। उन्होंने कहा कि जाति, पंथ, प्रांत, भाषा, के नाम पर संकीर्ण विचारों की कट्टरता से अलगाववाद पैदा होता है। मानवीय रिश्तों में जहर घुल जाता है। मुनि कमलेश ने कहा कि कट्टरता की दुर्भावना अणु बम, परमाणु बम से भी खतरनाक है। कट्टरता अपनाने वाला मानवता के टुकड़े-टुकड़े कर देता है। कट्टरपंथी विचारधारा वाले चाहे संत भी क्यों ना हो वह अलकायदा तालिबान से कम नहीं है। विश्व बंधुत्व की भावना अपने दिलों में साकार करने वाला ही सच्चा धार्मिक है। कट्टरता में अंधे बने हुए कण-कण में बिखर गए हैं। वह धर्म द्रोही भी ह...
तेरापंथी सभा का तीन दिवसीय प्रतिनिधि सम्मेलन शुरू चेन्नई. माधवरम में जैन तेरापंथ नगर स्थित महाश्रमण सभागार में विराजित आचार्य महाश्रमण ने सोमवार को तेरापंथी सभा के तीन दिवसीय प्रतिनिधि सम्मेलन की शुरुआत पर कहा वैसे तो तेरापंथ की अनेक संस्थाएं हैं जो अपने-अपने ढंग से कार्य कर रही हैं, किन्तु महासभा मजबूत संस्था है जिस पर अतिरिक्त बोझ भी डाला जा सकता है। आचार्यश्री ने नवीन ज्ञानशालाओं की स्थापना तथा पूर्व से संचालित हो रही ज्ञानशालाओं के ज्ञानार्थियों की संख्या के साथ-साथ गुणवत्ता वृद्धि पर भी ध्यान देने को कहा। धर्म के क्षेत्र में चार तीर्थ बताए गए हैं-श्रावक-श्राविका तथा साधु-साध्वी। दोनों के अलग-अलग विधि-विधान हो सकते हैं। कलयुग में संगठन की शक्ति होती है। संगठन के सामने व्यक्ति गौण होता है। जहां व्यक्ति प्रधान हो जाए तो वहां संगठन कमजोर हो सकता है। सभाएं स्थानीय स्तर पर जिम्मेदार होती है...
चेन्नई. साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में विराजित मुनि संयमरत्न विजय ने कहा नागिन जिस तरह लोगों के प्राण हर लेती है वैसे ही माया विश्वास को हर लेती है, विश्वास मिटाकर वह हमारे मित्रों की संख्या घटा देती है। गंदे पदार्थों के स्पर्श से शुद्ध पदार्थों की जैसे पवित्रता नष्ट हो जाती है, वैसे ही माया रूपी गंदगी से मित्रता रूपी स्वच्छता नष्ट हो जाती है। शुक्ल पक्ष जिस प्रकार चंद्रमा की कलाओं को विकसित करता है, वैसे ही माया भी कुटिलता और वक्रता को बढ़ाती रहती है। जिस प्रकार सर्प अपनी केंचुली को एक बार छोउ़कर उस ओर मुड़कर भी नहीं देखता, उसी प्रकार सरल ज्ञानी पुरुष भी शुभ गति को रोकने वाली ऐसी माया की ओर मुड़कर नहीं देखता। सरल प्राणी माया की छाया से अपनी काया को बचाकर चलता है। माया की छाया हमारे सद्गुणों को समाप्त करके दुर्गुण भर देती है। जिस प्रकार बगुला एक टांग पर खड़ा रहकर ध्यान का ढोंग करके मौक...
चेन्नई. एमकेबी नगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने कहा रोग शत्रु की तरह हैं। जैसे योद्धा शत्रु पर वार कर उसके अंग विच्छेद कर देता है उसी प्रकार रोग भी व्यक्ति के अंगों का विच्छेद कर देता है। आयु टूटे हुए घड़े से रिसते पानी की तरह पल-पल खत्म हो रही है और मृत्यु नजदीक आ रही है। इतना होने के बावजूद मानव परलोक की बिना चिंता किए प्रमाद की प्रगाढ़ निद्रा में सोया हुआ है जो महान आश्चर्य है। साध्वी स्नेहप्रभा ने कहा ज्ञानियों न वृद्धावस्था को भूखी शेरनी की तरह बताया है। वह जिस प्रकार अपने शिकार की ताक में रहती है उसी प्रकार वृद्धावस्था भी जवानी का शिकार करने की ताक में रहती है। इस संसार में सिवाय हमारी जीवात्मा के सभी पदार्थ अशाश्वत व अधु्रव हैं। यानी यह संसार तो विनाश को प्राप्त होने वाला है। तीन लोक में यदि कोई शाश्वत है तो वह है मोक्ष। बाकी सब अशाश्वत हैं जिनको स्थान छोडऩा पड़ता है। ...
चेन्नई. साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने कहा उत्तम कार्य करने वाला ही जीवन को उत्तम बना पाता है। आचरण से ही मनुष्य आचार्य बनता है। जिसमें आचरण नहीं होता वे आचार्य नहीं बन सकता। समझ के आचरण से किया गया हर कार्य कीमती हो जाता है। मनुष्य को अपने अच्छे कर्मो से अपनी आत्मा को हल्का करने का प्रयास करना चाहिए तभी जीवन सफलता तक पहुंच पाएगा। जिस मनुष्य का भजन कीर्तन बढ़ता है उसका वजन घटने लगता है। मनुष्य चाहे तो तप, तपस्या और धर्म कर अपनी आत्मा के वजन को पूरी तरह से घटा सकता है। तप, आराधना करने वाले लोग बहुत ही भाग्यशाली होते है। परमात्मा के चरणों में अपना जीवन समर्पित करने वाला मनुष्य श्रेष्ठ बनता है। गुरु चरणों में जाकर जीवन धन्य बनाना चाहिए। यह प्रवचन का मौका खुद की सोई आत्मा को जगाने के लिए मिला है। इस मौके का लाभ उठा कर आत्मा के भार को कम करने का प्रयास करना चाहिए। इस समय ...
चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि महाराज ने कहा किसी कार्य या परिस्थिति की आदत होते ही व्यक्ति उससे परेशान होना बंद हो जाता है और जिस वातावरण या परिस्थिति की आदत नहीं है वह उसे परेशान करती रही है। सभी को बाहर का वातावरण प्रभावित करता ही है, किसी को ज्यादा और किसी को कम। इस मौके पर उपाध्याय प्रवर तीर्थेशऋषि महाराज के पावन सानिध्य में तपस्यार्थियों का पारणा और आलोचना कार्यक्रम हुआ। महाराज ने कहा परमात्मा ने दो प्रकार के धर्म बताए हैं- श्रावक धर्म और साधु धर्म। एक आगार श्रावक और दूसरा अणगार श्रमण। श्रावक परमात्मा के पास जाते हैं और वहां से कुछ उपहार लेकर आ जाते हैं। श्रमण परमात्मा के चरणों में जाता है और वहां का ही होकर रह जाता है। भगवान महावीर ने चार ध्यान बताए हैं- आर्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान और शुक्लध्यान। हमें कभी-कभार आर्तध्यान और रौद्रध्यान हो स...
चेन्नई. अयनावरम स्थित जैन दादावाड़ी में विराजित साध्वी कुमुदलता ने सोमवार को प्रवचन में भगवान महावीर के चौथे अणुव्रत ब्रह्मचर्य की व्याख्या करते हुए कहा महावीर स्वामी का ब्रह्मचर्य अणुव्रत मर्यादित रहने का संदेश देता है। ब्रह्मचर्य में वह शक्ति होती है जो तोप और तलवार में संभव नहीं। जो व्यक्ति ब्रह्मचर्य का पालन करता है वह जीवन में बहुत कुछ हासिल कर सकता है। वासना में डूबा व्यक्ति धीरे-धीरे शिथिल होता जाता है। साध्वी ने कहा जैन रामायण के अनुसार लक्ष्मण की ब्रह्मचर्य शक्ति के दम पर ही भगवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी। उन्होंने ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले विजयकंवर और विजयाकंवरी का प्रसंग सुनाया जिन्होंने शादी के दिन से ही कृष्ण पक्ष और शुक्लपक्ष का संकल्प लेकर ब्रह्मचर्य का पालन किया और समय आने पर संयम पथ की ओर अपने कदम बढाए। ब्रह्मचर्य उत्तम तपस्या, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, संयम...
चेन्नई. ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा तैरना और डूबना इन्सान के हाथ में है बाकी सब निमित्त की बात है। जीवन रूपी सिक्के के दो पहलू हैं सुख और दुख। मानव और भगवान दोनों ही हीरे हैं। मानव के अंदर ही देव व दानव दोनों हैं। देव की प्रतिष्ठा और दानव का दहन करना मानव भव की विशेषता है। विशेषता देखने वाला विशिष्ट और कमियां देखने वाला कमीना होता है। मानव, मौत और मुक्ति तीनों की एक ही राशि है। साध्वी ने कहा जीवन को तीर्थ बनाओ तमाशा नहीं। अंतर केवल इतना है कि एक खान में पड़ा है और दूसरा शान से चढ़ा है। यह जिंदगी सिणगारने जैसी है सुलगाने जैसी नहीं। मंदिर व स्थानक का जीर्णोद्धार करना तो आसान है जीवन का जीर्णोद्धार करने की चिंता करनी है। साध्वी सुप्रतिभाश्री ने कहा जो आत्मा के साथ कर्मों को चिपकाने का काम करे वही लेश्या है। विज्ञान ने इसे आभामंडल कहा है, भगवान ने उसे लेश्या कहा है।
कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की कड़ी में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि ने धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा कि आचार्य सम्राट परम पूज्य श्री आनंदऋषिजी म . सा . एवं उपाध्याय प्रवर कवि रत्न श्री केवलमुनिजी म सा की जन्म जयंती पर बोलते हुए कहा – जय आनंद आनंद गाये जा, चरणों में शिष झुकाये जा, इन भजन की कड़ियों का सामूहिक उच्चारण कराते हुवे कि आचार्य श्री महाराष्ट्र में अहमदनगर जिले के एक सिराची चिचोंडी नगर में देवीचंदजी हुलाशी बाई गुगलिया के यहां विक्रम संवत 1957 सावन सुदी एकम को हुआ* 👉🏻 *आपका नाम नेमीचंद रखा पर प्यार से सब गोटूराम नाम से पुकारते थे बचपन में ही माता ने संस्कार दिये थे बचपन खेलने खाने का पढ़ाई करने का होता है उस समय ऋषि संप्रदाय के पूज्य श्री रतन ऋषिजी म सा वहाँ पधारे पूज्य श्री बच्चे के गुणों को निहारा और माता उलसाबाई से कहा यह घर में रहेगा तो घर...
त्रिदिवसीय उपासक सेमिनार का हुआ समापन दो और मुमुक्षु बहनों की होगी चेन्नई में दीक्षा सोमवार से प्रारम्भ होगा त्रिदिवसीय जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा का अधिवेशन माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में ठाणं सुत्र के दूसरे अध्याय का विवेचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने साधकों को संबोधित करते हुए कहा कि क्रोध दो प्रकार का होता है – आत्म-प्रतिष्ठित और पर-प्रतिष्ठित| कभी कभी दूसरा निमित नहीं बनता है, खुद के निमित से ही गुस्सा आ जाता है, दूसरे न गाली दे, न बुरी बात कहे, फिर भी स्वयं से गुस्सा हो जाता है, जैसे जीभ दांतों के बीच आ गई गुस्सा आ गया, यह आत्म-प्रतिष्ठित क्रोध हैं, गुस्सा हैं| दूसरे ने हमें गाली दी या हमारा कहना नहीं माना, तो उस पर गुस्सा आ जाता है, यह पर-प्रतिष्ठित क्रोध हैं| दोनों ही प्रकार के क्रोध से बचने का प्रयास करें| आचार्य श्री ने आगे कहा कि आदमी की दुर्...
रविवार को नॉर्थ टाउन बिन्नी मिल, पेरम्बूर में आचार्य श्री आनन्दऋषिजी का 119वां जन्मोत्सव एवं अठ्ठाई तप महोत्सव प्रात: 9 बजे से नॉर्थ टाउन (बिन्नी मिल) पेरम्बूर में मनाया गया। यह जन्मोत्सव उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि महाराज, तीर्थेशऋषि महाराज, आचार्य मज्ज्जिनपूर्णानन्दजी, आचार्य पुष्पदन्तसागरजी, उप प्रवर्तक विनयमुनि वागीश, उपप्रवर्तक गौतममुनि गुणाकर, पू.संयमरत्नविजयजी, पू.भाग्यचन्द्रविजयजी, महासती कुमुदलताजी, महासती अक्षयप्रज्ञाजी, महासती मधुस्मिताजी के पावन सानिध्य में संपन्न हुआ। उपाध्याय प्रवीण ऋषि ने अपनी दीक्षा के बाद आचार्य आनन्दऋषि के प्रथम चातुर्मास में शामिल होने का अनुभव बताते हुए कहा कि देवी हुलसा की कुक्षि से जन्मे नेमकुमार ने बाल आयु में ही संयम, चरित्र और तप के अनुगामी बन चरित्र का कठोर संकल्प लिया, पूज्य रत्नऋषिजी का कठोर अनुशासन में रहते हुए धर्म के अनमोल मोती बन निखरे। वे जब भ...