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हृदय की वक्रता को माया कहा जाता है: साध्वी सुधाकंवर

हृदय की वक्रता को माया कहा जाता है: साध्वी सुधाकंवर

कोडमबाक्कम वडपलनी श्री जैन संघ जैन भवन के प्रांगण में साध्वी सुधाकंवर की निश्रा में प्रखर वक्ता श्री साध्वी विजय प्रभा ने मुखारविंद से धर्म सभा में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि स्थानांग सूत्र के चौथे स्थान में चार प्रकार के कषाय में तीसरा कषाय माया बताया गया है। हृदय की वक्रता को माया कहा जाता है। माया मित्रता का नाश कर देती है जीवन में कटुता का विष घोल देती है,इसके विपरीत सरलता धर्म का प्रवेश द्वार है। बिना सरलता के जीवन कभी उन्नत नहीं हो सकता! उत्तराध्ययन सूत्र में प्रभु ने बताया कि धर्म का निवास स्थान सरल हृदय में ही है। हमें अपने जीवन में से कटुता – कपट – माया की भावना को निकाल कर के सरलता और सहजता को स्थापित करना चाहिए। सरलता उत्थान का मार्ग है तो कुटिलता पतन का मार्ग है।

साध्वी सुयशाश्री ने प्रवचन में कहा कि परमात्मा की अनंत कृपा से हमें समझ शक्ति प्राप्त हुई है। हम सिर्फ सुन ही नहीं सकते, बल्कि सुने हुए को समझ भी सकते हैं। तो हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी बुद्धि को विवेक प्रदान करें। बुद्धि मिलना बहुत पुण्य की बात है लेकिन उससे भी ज्यादा अहोभाग्य की बात यह है कि बुद्धि के साथ समझ भी मिले। क्योंकि बुद्धि जीवन को ऊंचाइयों तक तो ले जा सकती हैं लेकिन जीवन को सार्थक बनाने के लिए समझदारी होना आवश्यक है। धर्म सभा में बेंगलुर के एटा गार्डन उदयपुर, जयपुर और अनेक उप-नगरों से श्रद्धालुओं दर्शनार्थ के लिए पधारे, धर्म सभा का संचालन संघ के मंत्री देवीचंद बरलोटा ने किया !

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