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हर एक आत्मा में परमात्मा का निवास है : श्री वरुण मुनि जी

हर एक आत्मा में परमात्मा का निवास है : श्री वरुण मुनि जी

श्री गुजराती जैन संघ गांधी नगर बंगलौर में चातुर्मास हेतु विराजमान दक्षिण सूरज ओजस्वी प्रवचनकार डॉ. श्री वरुण मुनि जी महाराज ने प्रवचन करते हुए कहा कि दीन, दुखी और पीड़ित प्राणियों की अनदेखी करना साक्षात धर्म और परमात्मा का अपमान करने के समान है। हर एक आत्मा में परमात्मा का निवास माना गया है। उसकी सेवा में समर्पित होना चार धामों की यात्रा करने के बराबर है। हर एक धार्मिक स्थान सेवा का केंद्र बने। उन्होंने कहा कि अहिंसा, दया और तपस्या सभी धर्मों से श्रेष्ठ धर्म है, सेवा धर्म सबसे कठिन है। सभी धर्मों की उपासना पद्धति अलग-अलग हो सकती है, परंतु सेवा को सभी धर्मों ने पहला स्थान दिया है।

उन्होंने बताया कि यदि कोई प्राणी तड़प रहा हो और हम मौन दर्शक बने रहें, तो यह मनुष्य को धार्मिकता का पात्र नहीं बनने देता। सेवा और सहयोग धर्म के दो स्तंभ हैं। इनके बिना धर्म अधूरा है। उन्होंने कहा कि धर्म कोई भी हो, हर धर्म प्रेम, मानवता और सेवा की बात करता है, लेकिन लोगों ने अपने स्वार्थ के कारण धर्म को अलग-अलग ढंग से परिभाषित कर दिया है। जैन दर्शन हमारी जीवनशैली को बदलने का एक श्रेष्ठ दर्शन है। जिन्होंने अपनी आत्मा को जीत लिया है उन्हें जिनेंद्र कहा जाता है। सिकंदर ने भी दुनिया को जीतने का प्रयास किया, लेकिन अंत में वह अपने आप से हार गया।

दुनिया में त्याग, साधना और चरित्र की पूजा होती है। सुख प्राप्त करने वाले को सिंहासन पर बैठाया जा सकता है, परंतु त्यागी की पूजा की जाती है। दूसरों को जीतना आसान है, लेकिन केवल वही व्यक्ति, जो अपनी आत्मा को जीत लेता है, एक वैरागी, जिनेंद्र बन जाता है। दुनिया को जीतना आसान है, परंतु स्वयं को जीतना बहुत कठिन है। भगवान को मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे में खोजने की आवश्यकता नहीं, उनका निवास तो दरिद्र नारायण के भीतर है। उनकी सेवा और सम्मान करना ही सच्ची धर्म आराधना है। सेवा में दिखावा और प्रदर्शन नहीं होना चाहिए जिससे उसके आत्म-सम्मान को ठेस पहुंचे। दो केले देकर उसकी फोटो वायरल करना उसके साथ सबसे बड़ा अन्याय है।

       मधुर वक्ता रूपेश मुनि जी महाराज ने एक अत्यंत मधुर भजन प्रस्तुत किया, जिससे सभी श्रोता भक्ति भावना में डूब गए। अंत में, उपप्रवर्तक परम पूज्य श्री पंकज मुनि जी महाराज ने सभा की समाप्ति मंगल पाठ से की।

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