हमारा मोह संसार में है। मोहनीय कर्म की स्थिती में 70 क्रोडा क्रोडी सागरोपम भोगना पडेगा। बडे बडे घरों मे कुत्ते बड़ी बड़ी गाडी में घूमते है है एसी घर मे रहते है मालिक उन्हें खुद नहलाता है, भले ही माता पिता की सेवा न करता हो, परिग्रह रखोगे तो सुख सुविधाएं मिलेगी लेकिन ऐसे कुत्ते जैसा भव मिलेगा। धन मे अत्याधिक आसक्ति रखोगे तो अगले जन्म में नाग बनकर उस धन की चौकीदारी करोगे।
तो ताजगी गार्डन के फूल मे है, वह गमले के फूल मे नही है तो महक गमले के फूल मे है वैसी प्लास्टिक के फूल में नही।
कुछ व्यक्ति गार्डन के फूल की तरह होते है खुद भी खाते है और को भी खिलाते है, सबका ख्याल रखते है, कुछ व्यक्ति गमले के फूल समान होते है जो खुद खाते है ज्यादा से ज्यादा अपने परिवार का ध्यान रखते है, बाकी किसी के बारे में नही सोचते है। और कुछ व्यक्ति कागज के फूल के समान होते है जो न तो खुद खाते है न दुसरो को खिलाते है ।
दातारों का मजा यही है खाने और खिलाने में, कंजूसों का मजा यही है धन जोड़ जोड़ मर जाने में । मम्मन सेठ की आत्मा ने पिछले जन्म मे सन्त को अहो भाव से लडडू बहराए थे । सारे के सारे लड्डू सुपात्र दान कर दिए। लेकिन जो लड्डू का चूरा बचा उसको खाया तो बहुत स्वादिष्ट लगे और मन ही मन पछताया की काश थोड़े लड्डू में रख लेता। उत्कृष्ट
भाव से बहराने से पुणवानी बांधी ली, लेकिन बहराने के बाद मन मे अफसोस हो गया इसलिये अगले जन्म मे धन तो खुब मिला लेकिन कंजूस प्रवृत्ति मिली केवल धन का संग्रह करा, और खाने में भी केवल उड़द के बाकुले खाना पड़ते क्योंकि बाकी कुछ भी खाता तो उसका पेट खराब हो जाता।
पुनिया श्रावक कालू कसाई का बेटा था जिससे अपार धन सम्पत्ति उसे मिली लेकिन उसने इस धन संपत्ति को पाप की कमाई जानकर सब कुछ दान में दे दी । और आजीविका के लिए पुनी से कपड़ा बुनता था इसलिए उसका नाम पुनिया श्रावक पड़ा। उसके परिग्रह के त्याग थे
वो केवल इतना ही कमाता की रोजाना दो व्यक्ति का पेट भर सके।
आनन्द श्रावक के पास 10000 हजार गायों की 4 गौशाला थी, 40000 गाये जो 5-5 लीटर दूध कुल 200000 लीटर दूध देती थी, उसमें से थोड़ा सा वो खुद वापरता था, फिर नौकरों में बंटवाता था, और शेष सब गाँववालों को बांट देता था, उपवन की सब्जिया भी पूरे गांव में बांट देता । आनन्द श्रावक ने भी परिग्रह की
मर्यादा करी और श्रावक के 12 व्रतों को धारण किया। भगवान महावीर के 1.59 लाख श्रावक लेकिन केवल 10 श्रावकों का वर्णन विशेष आता है क्योंकि उन्होने परिग्रह परिमाण व्रत और श्रावक के 12 व्रतों को धारण किया था।
आगम मे दान का वर्णन आया है। दान, शील, तप और भाव ये 4 मोक्ष के मार्ग है। तीर्थंकर भी संयम ग्रहण करने के पूर्व वर्षीदान करते थे। अभी भी दीक्षा के पूर्व वर्षीदान दान किया जाता दी क्योकि दान के बगैर मोक्ष मिलने वाला नही है।
चुप्पी के साथ जरा गर्जन भी सीखो, बाते जो बुरी लगे उनका संसार से विसर्जन सीखो ।
यह परिग्रह आपको नर्क मे भी ले जा सकता है और यही परिग्रह परिमाण व्रत मोक्ष में ले जाता है। बच्चे को बचपन से ही दान देने के संस्कार दो।
पूज्या साध्वी डॉ श्री कमलप्रज्ञाजी मसा :- जितना दुख की घड़ी में हम ईश्वर और संत सती को याद करते है यदि उतना ही सुख में भी याद करे तो दुख आएगा ही नहीं। जब व्यक्ति दुनिया से चला जाता है तो लोग कहते है की फंला शान्त हो गया । मतलब व्यक्ति जीते जी कभी शान्त नही रहता है हमेशा अशान्त रहता है।
राम नाम सत्य है अरिहन्त नाम सत्य है यह हम बात हम मृत व्यक्ति की शवयात्रा मे ही क्यों बोलते है क्या मृत व्यक्ति को सुनाते है। अरे राम नाम तो हमेशा से ही सत्य है अरिहन्त नाम भी हमेशा सत्य है। तो दुख के समय ही हम क्यों कहते है कि राम नाम सत्य है, अरिहन्त नाम सत्य है, सुख में भी तो राम नाम और अरिहन्त नाम ही सत्य होता है । क्या सुख के समय राम नाम और अरिहन्त नाम असत्य हो जाता है।
कुछ दिये बगैर सोना नही और देने के बाद रोना नही । जीजस क्राइस्ट को सुली पर न चढ़ाया न
होता तो दुनिया उन्हे भूल जाती, महात्मा गांधी के गोली न लगी होतो दुनिया भूल जाती, महावीर के कान में खिले न ठुके होते तो दुनिया उन्हें भूल जाती, मिट्टी को घड़ा और दही को बड़ा बनने के लिए आग से गुजरना ही पड़ता है । श्रीराम ने वनवास और कष्ट न सहे होते हो उन्हें कोई याद नही करता ।
भूख भूख चिल्लाने से भूख नही मिटने वाली, प्यास प्यास चिल्लाने से प्यास नही बुझने वाली, मोक्ष मोक्ष करने से मोक्ष नही मिलने वाला है । मोक्ष में जाना चाहते हो तो चार बाते जीवन में धारण कर लो, दिमाग को ठंडा, आँखों में शरम, जबान को नरम और दिल मे रहम रखो, इससे आप जँहा हो वंही पर स्वर्ग बन जाएगा और जँहा जाओगे वँहा भी स्वर्ग मिल जाएगा।