एएमकेएम में उत्तराध्ययन सूत्र के 23वें और 24वें अध्याय का हुआ स्वाध्याय
एएमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर में चातुर्मासार्थ विराजित श्रमण संघीय युवाचार्य महेंद्र ऋषिजी ने रविवार को उत्तराध्ययन सूत्र की 23वें अध्ययन केशी गौतमीय की विवेचना करते हुए कहा कि हमने पिछले अध्यायों में देखा कि उत्तराध्ययन सूत्र में अनेकों संवाद दिए गए। हर जगह ऐसी चर्चाएं आती है, जिनके माध्यम से हम गूढ़ रहस्यों को समझ सकें। ऐसा ही एक मधुर संवाद केशीकुमार श्रमण, जो पार्श्वनाथ परंपरा के थे, ने गौतमस्वामी के साथ किया। दोनों प्रचंड विद्वान और विशिष्ट ज्ञानी थे। इस अध्याय में श्रावस्ती नगरी के तिनुक उद्यान में दोनों में जो चर्चा हुई, उसका रोचक वर्णन है। वह एक अद्भुत दृश्य, प्रसंग होगा।
जिन लोगों ने स्वयं प्रत्यक्ष अनुभव किया, वे वास्तव में धन्य थे। यह हमारा पुण्य है कि उस संवाद को सुनकर भावों से वहां पहुंचने का सौभाग्य मिला। श्रावस्ती नगरी के उद्यान में गौतमस्वामी का पदार्पण हुआ। वहीं केसीश्रमण भी विराजमान थे। उनके अनुयायी आपस में मिलते हैं, चर्चाएं चलती है। इन मुनियों का आचरण ऐसा कि यह चर्चा का विषय बनता था।
उन्होंने कहा ये चर्चाएं एक दूसरे के प्रति कटूता पैदा करने वाली नहीं होती। दोनों के आचार में भेद होने के कारण दोनों परंपरा के साधु संशय में पड़ गए। जब लक्ष्य एक है तो फिर यह भेद किसलिए। दोनों ने मिलकर इन भेदों को स्पष्ट करने का निर्णय किया। इस अध्ययन की सर्वाधिक शक्तिशाली प्रेरणा यह है कि जिज्ञासाओं और संशयों का निर्णय वार्तालाप द्वारा उदार हृदय से किया जाना चाहिए। दूसरी विशेषता यह है कि मूल को ज्यों का त्यों रखते हुए देश-काल की परिस्थितियों के अनुसार बाहृय परिवर्तनों को स्वीकार करने से धर्म में जीवंतता बनी रहती है।
उन्होंने कहा आज के समय में हमारे अवचेतन मन को निर्मल बनाने वाला है यह स्वाध्याय। उस श्रावस्ती नगरी के लोगों के अलावा अदृश्य जीवों जैसे देव, दानव, गंधर्व, यक्ष आदि का भी वहां आगमन हुआ। वे भी उस संवाद को सुनने उपस्थित थे। जब सकारात्मक संवाद होता है, नकारात्मकता अपने आप दूर हो जाती है। हमें स्वाध्याय करते समय सामान्य नियमों का ध्यान रखना है। प्राकृत भाषा को देव भाषा के रूप में बताया गया है।
इसे साधारण नहीं लेना। यह स्वाध्याय का सिंचन नकारात्मक तत्वों को दूर करने वाला है। उन्होंने कहा जीवन में यदि कोई कन्फ्यूजन है तो प्रोपर व्यक्ति के पास पहुंचना चाहिए। जैसे ही केशीकुमार श्रमण को पता चला, गौतमस्वामी की दीक्षा पर्याय को देखते हुए उन्हें लेने आगे बढ़े। यह समादर संवाद को गरिमा देता है। आप जब सामायिक लेते हैं तो आसन बिछाते हैं।
यह सामायिक का आदर है। समझदार के साथ किया हुआ कार्य सबके लिए प्रसन्नता देने वाला है। उन्होंने कहा आज हमने वेश को अस्त्र बना लिया है। भगवान महावीर के बाद लोग वक्र जड़ हो गये है। यह समय का प्रभाव है। केशी श्रमण ने संवाद के बाद गौतमस्वामी से पांच महाव्रत अंगीकार किया। उन्होंने कहा धर्म को अविलंब करो, अधर्म को विलंब से करो।
उन्होंने 24वें समिति अध्ययन प्रवचन माता की विवेचना करते हुए कहा कि समिति और गुप्ति मिलाकर आठ प्रवचन माताएं है। निर्ग्रन्थ प्रवचन, पाठ में जिनशासन में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति अपेक्षित है। उन साधकों की यह माता है। वह दो काम करती है एक पालन और दूसरा पोषण। ये दोनों का काम माता जैसी करती है। समिति और गुप्ति साधना को पुष्ट बनाती है। ईर्या समिति, भाषा समिति, एषणा समिति, आदान निक्षेपणा समिति और परिष्ठापनिका समिति, पांच समितियां और तीन गुप्ति मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति है। ईर्या समिति में द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की अपेक्षा से यतना चार प्रकार की कही गई है।
भाषा समिति में क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, भय आदि भाव का परित्याग कहा गया है। एषणा समिति में गवेषणा, ग्रहणेषणा और परिभौगोष्णा से आहार, उपाधि, शय्या का परिशोधन करना है। इस दौरान बैंगलुरू, कवर्धा आदि क्षेत्रों से गुरुभक्तगण युवाचार्यश्री के दर्शनार्थ व वंदनार्थ उपस्थित हुए। रविवार को उत्तराध्ययन सूत्र के लाभार्थी भगवान महावीर समिति, टी. नगर, प्रकाश, अमित डुंगरवाल, इंदरचंद डुंगरवाल परिवार थे। कमलचंद छल्लाणी ने सभा का संचालन किया।