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सामायिक करना अपने आप मे एक साधना है: जयतिलक मुनिजी

सामायिक करना अपने आप मे एक साधना है: जयतिलक मुनिजी

 

नार्थ टाउन में गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने प्रवचन कि आत्मबन्धुओं, सामायिक करना अपने आप मे एक साधना है। जिसकी यह साधना सफल हो जाती है उसका अनंत संसार परिभ्रमण मिट जाता है। इसलिए यह सामायिक की साधना प्रत्येक व्यक्ति को करनी चाहिए। यह सबसे सरल, सुगम, उत्तम साधना हो । एक सामायिक में संसार के सब त्याग, प्रत्याख्यान का समावेश हो जाता है। इसलिए सामायिक को रानी मधुमक्खी की उपाधि दी गयी है। जो सामायिक की रुचि पूर्वक भाव पूर्वक सम्यक आराधना करते है वे जानते है कि सामायिक से कितने अनुपम सुख की अनुभूति होती है। जबरदस्ती, लोक लाज से सामायिक करने वाला सामायिक के सुख से वंचित रह जाता है।

सामायिक में लीन हो कर जो सामायिक का आस्वादन करेगा उसे ही सामायिक का महत्व समझ आयेगा। ज्ञानी- जन इसलिए कहते है कि सामायिक को समझो और जीवन में धारण कर लो। सामायिक करने वाला विश्व के सभी प्रकार के पापों, भोगों कामनाओं से रहित हो जाता है। सामायिक आत्मा के लिए सुरक्षा कवच है। यदि सामायिक व्रत भंग हो गया तो आत्मा अनन्त कर्मो का बांध कर भारी हो जायेगी जीव स्वयं अपनी आत्मा की रक्षा कर सकता है। सामायिक से संसारिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार पूर्ति हो जाती है ।

सामायिक करते समय संसार का सम्बन्ध विछेद न कर जीव को आत्मा के साथ सम्बन्ध बनाना होता है। यदि जीव ऐसा नहीं करता तो सामायिक आत्मा का रक्षा कवच नही बन पाती। क्रोध, मान, माया, लोभ, भाव रूपी लुटेरे है जो आत्म गुणों को क्षति पहुँचाते है। जो धर्म को समझता है उसे रोने की, दुखी होने की आवश्यकता नही पड़ती है। भगवान कहते है विवेक के आभाव में धर्म ध्यान नही हो पाता। जब तक सामायिक में हो तब तक तो विवेक से प्रवृत्ति करो। संसार में रहते हुए भी प्रति क्षण संयम धारण करने की उत्कृष्ट भावना होनी चाहिए।

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