*प्रेस विज्ञप्ति*
आचार्य सम्राट श्री आनंदऋषिजी म. सा. के जन्मोत्सव पर विशेष उद्बोधन
श्री गुजराती जैन संघ, गांधीनगर, बेंगलुरू में चातुर्मासार्थ विराजित दक्षिण सूर्य ओजस्वी प्रवचनकार प. पू. डॉ. श्री वरुणमुनिजी म. सा. ने अपने मंगलमय प्रवचन मे फरमाया कि *तित्थयरा समोसूरि* अर्थात आचार्य तीर्थंकर के समान होते हैं । प्रभु महावीर के बाद श्री सुधर्मास्वामी आचार्य के पाट पर विराजमान हुए, क्योंकि गौतमस्वामी केवली थे और केवली आचार्य के पाट पर विराजमान नहीं होते ।
श्रमण संघ के दूसरे पट्टधर के रूप में आचार्य सम्राट श्री आनंदऋषिजी म. सा.आसीन हुए। पूज्य प्रवर्तक श्री अमरमुनिजी म.सा.फरमाते थे कि जो मर्यादा पूर्वक हर कार्य करते हैं, वह आचार्य कहलाते हैं । जो मर्यादा की आंखों से देखते हैं, मर्यादा के कानों से सुनते हैं, मर्यादित हाथों से कार्य करते हैं अर्थात जिनके हर कार्य में मर्यादा होती हैं, वही आचार्य बनते हैं । महाराष्ट्र की धर्मधारा पर समर्थ गुरु रामदास, संत ज्ञानदेव, संत नामदेव, संत तुकाराम, शिवाजी महाराज जैसे अनेकानेक महापुरुष हुए ।
इसी भूमि पर अहमदनगर के समीप चिंचोड़ी ग्राम में श्री देवीचंदजी गुगलिया के गृहआंगन में माता हुलसा बाई की पावन कुक्षी से श्रावण शुक्ला प्रतिपदा के दिन एक पुत्र रत्न का जन्म हुआ, नाम रखा गया- श्री नेमीचंद्र । बाल्यकाल में एक दिन जब वे स्कूल से लोटे तो देखा कि घर में कोहराम मचा हुआ था । कारण पूछा तो पता चला कि पिताजी की मृत्यु हो गई । अल्पवय में पिताजी का वियोग होने के पश्चात वे अपने माताजी के साथ छुट्टियों में मौसी के यहां गये, वहां माताजी की प्रेरणा से महासती रामकुंवरजी के सानिध्य में उनमें धार्मिक संस्कार पल्लवित हुए । घोड़ागाड़ी से वापिस लौटते समय नीचे गिर गए किंतु उन्हें खारोंच तक नहीं आई, तो उन्होंने इसे महासतीजी के मंगलपाठ का उपकार समझा । तदनंतर उनके गांव में प. पू. श्री रत्नऋषिजी म. सा. का आगमन हुआ, उनके प्रतिबोध से वैराग्य का अंकुर प्रस्फुटित हुआ और मात्र 9 वर्ष की आयु में उन्होंने संयम अंगीकार कर लिया ।
पूज्य रत्नऋषिजी म. सा. के कठोर अनुशासन में उन्होंने आगमों एवं विभिन्न भाषाओं का गहन अध्ययन किया और गुरुदेव के देवलोक गमन के पश्चात उन्हें ऋषि संप्रदाय का आचार्य बनाया गया । बाद में श्रमण संघ की एकता के लिए सादड़ी में उन्हें प्रधान मंत्री पद दिया गया और फिर उपाध्याय बनाया गया। श्रमण संघ के प्रथम पट्टधर पूज्य श्री आत्मारामजी म. सा. के देवलोक गमन के पश्चात उन्हें आचार्य पद प्रदान किया गया, उस समय पंजाब के भी 18 बड़े महासंत वहां उपस्थित थे। उनका आचार्य पद काल श्रमण संघ के स्वर्णिम पृष्ठों में अंकित है । वे 14 भाषाओं के जानकार थे । ऐसे महान आचार्य के जन्मोत्सव पर हम उनके श्री चरणों में हार्दिक भावांजलि अर्पित करते हैं ।
आज हम बच्चों के भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए कुछ बिंदुओं पर चर्चा करेंगे । जन्म से 7 वर्ष तक की आयु, बच्चों के लिए दिल के विकास का समय होता है । इस समय में बच्चों को लाड-प्यार करें । उनका पूरा ध्यान रखें । बच्चों को माॅल नहीं माहौल चाहिए । 7 से 14 वर्ष की आयु मस्तिष्क विकास का समय होता है, इस समय बच्चों के अनुशासन का विशेष ध्यान रखें और उन्हें मर्यादित लाड प्यार दें । बच्चों को ज्यादा लाड- प्यार देने से वे बिगड़ जाते हैं ।
मां- बाप सद्संस्कार देकर SON से SUN बनाकर बच्चों के भविष्य को चमकाएं, अन्यथा वे SIN में चले जाते हैं । बच्चों के सामने किसी का भी अपमान नहीं करें, क्योंकि इसका प्रभाव उनके मन-मस्तिष्क पर पड़ता है । बात-बात में बच्चों को डराएं नहीं, उन्हें डांटे नहीं, जिससे वे डरपोक न बनेः। बच्चों को रिश्वत न दें अर्थात उन्हें झूठा प्रलोभन देकर बिगाड़ने का प्रयास न करें । बच्चों को कंफ्यूज ना करें, उनसे उम्र के हिसाब से काम लें । बच्चों को प्रोत्साहित करें, उनके अच्छे कार्यों की प्रशंसा करें, नहीं तो वे हीन भावना से ग्रसित हो जाते हैं । बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड करें, क्वांटिटी टाइम नहीं । बच्चों को समाज, देश और राष्ट्र की सेवा करने के लिए प्रेरित करें । इस प्रकार सही उम्र में सही दिशा देने से बच्चों की दुर्दशा नहीं होती और वे सही दिशा में अग्रसर होते हैं ।
हम भी माता-पिता के रूप में अपने बच्चों के भविष्य को संवारने में सहयोगी बनें तथा अपने कर्तव्य का समुचित रूप से पालन करते हुए धर्म के मार्ग पर अग्रेषित होवें ।
आज की प्रवचन सभा में ऑल इंडिया जैन कॉन्फ्रेंस महिला शाखा की सदस्याएं, चेन्नई, लोनावला, मुंबई व बैंगलोर के उपनगरों एवं गांधीनगर के आसपास के क्षेत्रों के अनेक श्रद्धालु भक्तजन उपस्थित थे ।
मधुर गायक श्री रुपेश मुनि जी म. सा. ने अत्यंत मधुर भजन के साथ सभी श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया। उप प्रवर्तक परम पूज्यश्री पंकजमुनि जी म. सा. ने मंगल पाठ प्रदान किया ।