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मोक्षगामी आत्माओं के स्रवणीय वचन को जिनवाणी कहते है: जयतिलक मुनिजी

मोक्षगामी आत्माओं के स्रवणीय वचन को जिनवाणी कहते है: जयतिलक मुनिजी

यस यस जैन संघ नार्थ टाउन में गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने प्रवचन में फरमाया कि जिनेश्वर भगवान ने सकल जीवों को धर्म मार्ग का निरुपण तारने के लिए किया। श्रुत यानि सुनना, चारित्र यानी आचरण करना। कुछ विशिष्ट आत्मायें होती है जिनके पास जन्म से ही ज्ञान होता है ऐसी भवि आत्माएं ही मोक्ष गामी होती हैं। मोक्षगामी आत्माओं से जो वचन श्रवण किये जाते है वो वानी जिनवाणी कहलाती है।

जीवन तभी सफल होता है जब कर्म बन्धनों को तोड़ आत्मा सिध्द बुद्ध होती है। आत्मा का संसार घटता बढ़ता रहता है जब संसार घटता है तो आत्मा उच्च गति में जाती है और संसार बढ़ता है तो नीच गति में जाती है ये उच्च नीच गति में जाना ही संसार है। संसार परिभ्रमण से बचने के लिए भगवान ने आगार व अणगार धर्म का निरुपण किया। जीव अभ्यास करने के लिए श्रावक‌ के व्रतों को अपनाता है। मूल व्रत एक ही है।

जैसे वृक्ष के मूल से‌ वृक्ष के अन्य भाग पेड़, पत्ती, शाखा आदि बनते है उसी प्रकार मूल व्रत अंहिसा व्रत है। इस व्रत के साथ अन्य सभी व्रत जुड़े है । ये सभी व्रत इस मूल व्रत की सुरक्षा करते है। अनुव्रत में जितनी मर्यादा श्रावक रखता है। उस मर्यादा को‌ गुणव्रत में और सीमित करता है। फिर शिक्षा व्रत में चिन्तन मनन कर अनावश्यक पापों का और त्याग कर अपनी‌ मर्यादा को और ज्यादा सीमित कर लेता है। सामायिक इतनी भीतर उत्तर जानी चाहिए कि सामायिक चितारने के बाद, पाप करने का अवसर हो तब भी उस पाप से निवृत होने की इच्छा हो। तभी वास्तव जीव सामायिक में होगा ।

तभी जीव पूर्ण रुप से त्यागी बन जाता है। यदि सामायिक भीतर में न उतरे तो स्थानक में आने बाद पाप की कामना मन में रहती है। जब तक कामनायें रहेगी जन्म मरण से मुक्ति नहीं मिलेगी। इस जन्म-मरण की मुक्ति के लिए‌ ही भगवान ने सामायिक का निरुपण किया। सामायिक में स्वयं द्वारा किये गये पाप की निन्दा करनी चाहिए । उन पापों से घृणा करनी चाहिए। जिससे पापों से निवृति हो सके। इस प्रकार जब 48 मिनट की सामायिक मन वचन काया से शुद्ध होने लगती है और कर्म की निर्जरा भी तीव्र गति से होने लगाती है।

सामायिक आत्मा को बल प्रदान करने वाली औषधि है आत्मा की सुरक्षा के लिए ही जिनेश्वर ने सामायिक का निरुपण किया। शहर क्षेत्र, हर काल में सामायिक कर सकते है पर फिर भी क्षेत्र शुद्धि और‌ द्रव्य शुद्धि का ध्यान रखना चाहिए। शुद्ध सामायिक का आनन्द अलग ही होता है। सामायिक भी ऐसे काल में करना चाहिए जब घर के किसी व्यक्ति को आपकी सामायिक से कोई तकलीफ़ न हो । जब सेवा का अवसर हो तो सामियक न कर सेवा करनी चाहिए। क्योंकि दूसरों को साता पहुंचाना भी सामायिक है।

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