मोहनीय कर्म संसार छोड़ने के मार्ग में बाधा, व्रति श्रावक बनने का रखे लक्ष्य- समीक्षाप्रभाजी म.सा.
पूज्य इन्दुप्रभाजी म.सा. के सानिध्य में दो-दो सामायिक के साथ भक्तामर के 36वें श्लोक का जाप
Sagevaani.com /सूरत,। मरूधर केसरी मिश्रीमलजी म.सा. की 134वीं जयंति एवं एवं लोकमान्य संत शेरे राजस्थान रूपचंदजी म.सा. की 97वीं जयंति के उपलक्ष्य में छह दिवसीय गुरू द्वय पावन जन्मोत्सव कार्यक्रम के पांचवे दिन शनिवार को मरूधरा मणि महासाध्वी जैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या सरलमना जिनशासन प्रभाविका वात्सल्यमूर्ति इन्दुप्रभाजी म.सा. आदि ठाणा के सानिध्य में श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ गोड़ादरा के तत्वावधान में दो-दो सामायिक के साथ भक्तामर के 36वें श्लोक का जाप किया गया। जाप के माध्यम से तीर्थंकर परमात्मा की आराधना करते हुए सर्वमंगल एवं कष्ट निवारण की कामना की गई। धर्मसभा में आगम मर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्रीजी म.सा. ने मांगलिक का महत्व बताते हुए कहा कि मांगलिक के शरणा चार होते है। जिसे नववर्ष के पहले ही दिन मांगलिक मिल जाती है उसका पूरा वर्ष अच्छा निकलता है। नए दिन से नई शुरूआत करेंगे ओर बड़ी मांगलिक सुनेेगे तो जीवन में कल्याण ही कल्याण होगा। आचार्य भद्रबाहुस्वामीजी 14 पूर्वो के ज्ञानी थे ओर सबसे बड़ी मांगलिक चतारि मंगल है जिसमें चार शरणा भी शामिल है। उन्होंने कहा कि गुरूओं के जयकारे लगाने से वातावरण पवित्र व पावन बन जाता है। सच्चे मन से की जाने वाली गुरू भक्ति सुफल प्रदान करती है। गुरूओं के प्रति समपर्ण भाव रखने के साथ उनके आदर्श भी जीवन में उतारने चाहिए। तत्वचिंतिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने कहा कि क तीन तरह के होते है काया,कर्म ओर कषाय। मोहनीय कर्म के कारण इंसान संसार को छोड़ नहीं पाता है ओर संसार को बढ़ाता है। गुणस्थान 14 होते है जिनमें श्रावक का व्रत देशवरित श्रावक गुणस्थान पांचवा है। जहां कषाय होते है वहां मोहनीय कर्म है। उन्होंने श्रावक के 12 व्रत में से दसवे व्रत देशवाकाशिक व्रत के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि एक संवर करते है तो 25 सामायिक का फल मिलता है। एक दिन पौषध करने पर 32 सामायिक का फल मिलता है। उन्होंने 11वे व्रत पौषध व्रत ओर 12वें व्रत अतिथि संविभागव्रत के बारे में भी समझाया। जो श्रावक 12व्रतों की पालना करता उसका जीवन धर्ममय होने के साथ विपुल कर्म निर्जर भी होती है ओर आत्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है। विद्याभिलाषी हिरलप्रभाजी म.सा. ने मेरी जान है गुरूवर भजन की प्रस्तुति दी। उन्होंने कहा कि महापुरूषों का जीवन गुणों से भरा रहता है। जो त्याग करता है वहीं महापुरूष बनता है ओर उनका जन्मदिन किसी क्षेत्र विशेष में नहीं बल्कि पूरे देश में मनाया जाता है। धर्मसभा में रोचक व्याख्यानी प्रबुद्ध चिन्तिका डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा.,सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। द्वय गुरूदेव जयंति महोत्सव के पांचवे दिन शनिवार को दो-दो सामायिक के साथ भक्तामर के 36वें श्लोक का जाप होगा।
*मिश्री गुरू की जयंति पर दे 135 तपस्या की भेंट*
छह दिवसीय आयोजन का समापन रविवार 18 अगस्त को श्रमण सूर्य मिश्रीमलजी म.सा. की 135 जंयति मनाते हुए होगा। जयंति एकासन दिवस मनाते हुए गुरू जाप, श्रावक दीक्षा व गुणानुवाद के साथ होगा। पूज्य इन्दुप्रभाजी म.सा. ने श्रावक-श्राविकाओं को मिश्री गुरू की 135वी जयंति होने से दया, उपवास,एकासन,डेढ़ पोरसी सहित 135 तपस्या की भेंट देने की प्रेरणा दी है। उन्होंने कहा कि सामायिक के तेले की भी भेंट देने की भावना रखनी है। गुरू मिश्री की जयंति पर 12 घंटे जाप भी करना है।
*महासाध्वी मण्डल की प्रेरणा बह रही त्याग तपस्या की गंगा*
महासाध्वी मण्डल की प्रेरणा से धर्म ध्यान व तप साधना का ठाठ लगा हुआ है। प्रतिदिन तपस्याओं के प्रत्याख्यान लिए जा रहे है। प्रवचन हॉल शनिवार को उस समय तपस्वी की अनुमोदना में हर्ष-हर्ष, जय-जय के जयकारों से गूंजायमान हो उठा जब पूज्य इन्दुप्रभाजी म.सा. के मुखारबिंद से सुश्राविका शिमलाजी सांखला ने 24 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। दीपिका चौधरी ने 6, राहुल रांका, कुसुम बेन डांगी, ममता सहलोत ने 5-5 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। कई श्रावक-श्राविकाओं ने तेला,बेला, उपवास,आयम्बिल, एकासन आदि तप के भी प्रत्याख्यान लिए। पूज्य इन्दुप्रभाजी म.सा. ने सभी तपस्वियों के प्रति मंगलभावनाएं व्यक्त की। बाहर से पधारे सभी अतिथियों का स्वागत श्रीसंघ एवं स्वागताध्यक्ष शांतिलालजी नाहर परिवार द्वारा किया गया। संचालन श्रीसंघ के उपाध्यक्ष राकेशजी गन्ना ने किया।
*श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ, लिम्बायत,गोड़ादरा,सूरत*
सम्पर्क एवं आवास व्यवस्था संयोजक-
अरविन्द नानेचा 7016291955
शांतिलाल शिशोदिया 9427821813
*प्रस्तुतिः* निलेश कांठेड़
अरिहन्त मीडिया एंड कम्युनिकेशन,भीलवाड़ा