तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता-शांतिदूत-अहिंसा यात्रा के प्रणेता-महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण जी ने अपने मंगल प्रवचन ने फरमाया कि साधु और श्रावक को आगम में श्रद्धा रखनी चाहिए। आगम की भाषा तीर्थंकरों की वाणी पर आधारित होती है। तीर्थंकरों की वाणी नय युक्त होती है इसमें परिवर्तन करने का प्रयास नहीं करना चाहिए।
आचार्य प्रवर ने एक जिज्ञासा के समाधान में बतलाया कि आचार्य को तीर्थंकर तुल्य इसलिए कहा जाता है की वर्तमान में तीर्थंकर नहीं है और आचार्य ही आगम संबंधी, आचार संबंधी और तत्व बोध के निर्णय देने के अधिकारी होते हैं।
तीर्थंकर तीर्थ की स्थापना करते हैं परंतु वर्तमान काल में आचार्य ही साधु को दीक्षा आदि व्रत प्रदान करते हैं तो वे तीर्थंकर प्रतिनिधि या तीर्थंकर तुल्य कहलाते हैं। आचार्यवर ने फरमाया कि तीर्थंकर पूर्ण वीतराग होते हैं परंतु आचार्य आदि वीतराग नहीं होते परंतु कषाय मंदता के द्वारा वीतरागता की ओर बढ़ने का प्रयास करते हैं।
तीर्थंकरों के पास केवल ज्ञान होता है और आचार्यों के पास श्रुत ज्ञान रहता है। आचार्य आगम के आधार पर प्रवचन करते हैं जो वाणी तीर्थंकरों ने कही है उसी के आधार पर जनमानस को उद्बोधन प्रदान करते हैं। प्रवचन में आचार्य श्री ने उपस्थित समणियों से आगम के बारे में प्रश्नोत्तर किया।
प्रवचन के दौरान तेरापंथ धर्मसंघ की वयोवृद्ध साध्वी श्री बिदामा जी के 101 वर्ष पूर्ण कर 102 में वर्ष के प्रवेश के अवसर पर “एक सदी की जीवन यात्रा” पुस्तक का विमोचन व्यवस्था समिति अध्यक्ष श्री मूलचंद नाहर, महामंत्री दीपचंद नाहर आदि द्वारा किया गया। आचार्य प्रवर ने साध्वी श्री के लिए मंगल कामना कर करते हुए कहा कि विरले लोग होते हैं जो जीवन के 100 वर्ष पूर्ण करते हैं।
प्रवचन में यातायात उप पुलिस अधीक्षक एन.के. रमेशजी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी एवं आचार्य प्रवर से आशीर्वाद ग्रहण किया। एनडीआरएफ के कर्नाटका बटालियन के कमांडर श्री केशव ने कहा कि जिस प्रकार तेरापंथ टास्क फोर्स के सदस्य तैयार हो रहे हैं यह एनडीआरएफ के कार्यों को काफी मात्रा में सहायता प्रदान करने वाले साबित होंगे। उन्होंने आचार्य प्रवर के चरणों में वंदना अर्ज करते हुए आशीर्वाद ग्रहण किया। कार्यक्रम का संचालन मुनिश्री दिनेशकुमारजी ने किया ।