जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने बाल दिवस पर बोलते हुए कहा कि बालक ईशवर का अवतार कहा जाता है क्योंकि बालक हृदय सरल साफ होता है। उसमें तेरे मेरे की गंदगी नहीं होती, उसका जीवन जैसा भीतर रहता है वैसा बाहर वाणी द्वारा नजर आता है। ज्यों ज्यों वो लोगों के सम्पर्क आता है वैसे भेदभाव के विचार ग्रहण करता रहता है! आकाश के बादलों से बरसा हुआ पानी सदा स्वच्छ होता है किन्तु धरती पर आकर दुनिया की संगत से मैला होता चला जाता है!
भगवान महावीर ने भी साधको के लिए बालक वत बनकर साधना करने से सफलता मिलती है! मोह माया अहंकार आदि साधक के बाधक तत्व होते है!सभी ग्रंथो मे पंथो मे बालक जीवन को पवित्र बतलाया गया है! छोटी छोटी टहनिया जिधर झुकाते है उधर झुक जाती है बड़े बृक्ष टूट जाते है पर नरम नहीं होते बाल संस्कार का बड़ा ही महत्व रहा है!स्कूल व प्रारंभिक शिक्षा मे बच्चों को अच्छे संस्कार प्रदान कर दिए जाए तो वे ही देश के कर्णधार बन जाते है!जितने भी महापुरष तीर्थंकर हुए उनकी बाल अवस्था अच्छे संस्कारो से ओत प्रोत रही!
सभा मे साहित्यकार श्री सुरेन्द्र मुनि जी द्वारा नवकार साधना के अंतर्गत तप का महत्व प्रति पादित किया गया तप से समस्त पापों का नाश होता है तप तत्काल मन वचन काया मे पवित्रता का संचार कर देता है! तप जीवन के सभी कार्यों को सफल बना देता है! बाल दिवस के उपलक्ष्य मे बड़ी संख्या मे बालकों ने अपने कार्यक्रम प्रस्तुत किए समाज व दानवीर परिवार द्वारा सभी को पुरस्कार प्रदान किए गए बाहर से पधारे हुए महानुभावो का प्रधान महेश जैन महामंत्री उमेश जैनमन्त्री पुष्पेंद्र जैन परषोतम जैन व शान्ति लाल जैन बुरड द्वारा स्वागत सत्कार किया गया! दिनांक 15नवंबर को सामूहिक पार्षवनाथ भगवान की स्वरूप उपसर्ग हर स्तोत्र का महापाठ कराया जाएगा!