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बाद में खरीदें कार, पहले लाएं जीवन में संस्कार – राष्ट्रसंत श्री ललितप्रभ जी

बाद में खरीदें कार, पहले लाएं जीवन में संस्कार – राष्ट्रसंत श्री ललितप्रभ जी

जैसा रखोगे अपना स्वभाव वैसा ही पड़ेगा दूसरों पर प्रभाव राष्ट्रसंत: ललित प्रभ जी

प्रवचन से प्रभावित होकर अनेक लोगों ने मंच पर आकर किया नशे का त्याग

दुर्ग 3 जुलाई।
जीवन में अपने मस्त स्वभाव के मालिक बने पाठ ऑफ लाइफ भले ही हमारे हाथ में नहीं है पर आट ऑफ लाइफ तो हमारे हाथ में जीवन का इंजॉय करते हुए हमें जीवन जीना चाहिए। पाना और बटोरना मनुष्य के जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन गया है पाना और बटोरने की चाह में मनुष्य आज सर्वाधिक दुखी हो रहा है। पत्नी अपने पति को धर्म मार्ग पर चलने का मार्ग दिखाती है इसीलिए पत्नी धर्म पत्नी कहलाती है। उक्त उदगार ऋषभ कालोनी ग्राउंड में आयोजित प्रवचन श्रृंखला के द्वितीय दिवस राष्ट्रसंत ललित प्रभ जी महाराज ने व्यक्त किए।

राष्ट्र-संत श्री ललितप्रभ सागर जी महाराज ने कहा कि जो माता-पिता बच्चों को केवल जन्म देते हैं वे सामान्य हैं, जो बच्चों को जन्म के साथ सुविधाएं-संपत्ति देते हैं, वे माता-पिता मध्यम हैं, पर जो अपने बच्चों को जन्म और सम्पत्ति के साथ अच्छे संस्कार भी देते हैं वही उत्तम माता-पिता कहलाते हैं। उन्होंने अभिभावकों से कहा कि वे अपने बच्चों को इतना सुयोग्य बनाएं कि वे समाज की अग्रिम पंक्ति में बैठने लायक बन सके और बच्चे ऐसा जीवन जीए कि लोग उनके माता-पिता से पूछने लग जाए कि आपने ऐसी कौनसी पुण्यवानी कि जो आपके इतने अच्छी संतान पैदा हुई। उन्होंने कहा कि बच्चों को पढ़ा-लिखाकर केवल शिक्षित ही न बनाएं वरन् संस्कारित भी बनाएं।

संतप्रवर रविवार को सकल जैन समाज द्वारा जिला कचहरी के पीछे स्थित ऋषभ नगर मैदान में आयोजित चार दिवसीय जीने की कला प्रवचन माला के दूसरे दिन हजारों सत्संग प्रेमी भाई बहनों को जीवन को संस्कारी बनाने के गुर विषय पर संबोधित कर रहे थे। बच्चों को कार से पहले संस्कार देने की सीख देते हुए संतश्री ने माता-पिता से कहा कि अगर आप अपने बुढ़ापे को सुखी बनाना चाहते हैं तो बच्चों को केवल कार न दें, साथ में संस्कार जरूर दें। उन्होंने कहा कि अच्छे संस्कार दुनिया के किसी मॉल में नहीं मिलते ये तो घर के अच्छे माहौल में मिलते हैं। हमें इतना उत्तम जीवन जीना चाहिए कि हमारा जीवन ही बच्चों के के लिए आदर्थ बन जाए।

परिवार का माहौल अच्छा बनाएँ: बच्चों को संस्कारित करने का पहला सूत्र देते हुए संतश्री ने कहा कि परिवार का माहौल अच्छा बनाएँ। बच्चों पर धन के साथ समय का भी निवेश करें। घर में अच्छा साहित्य रखें। घर में सम्मान की भाषा बोलें। नाम के पहले श्री व बाद में जी लगाएं, बड़ों के पांव छुएं, मेहमानों को गेट तक पहुँचाने जाएं, घर में लड़ाई-झगड़े का वातावरण न बनाएं और व्यसनों का कदापि सेवन न करें।

नशे का त्याग करें – संत प्रवर ने कहा कि जहाँ एक अच्छी आदत जीवन को ऊँचाइयाँ दिया करती है वहीं एक बुरी आदत अच्छी जिंदगी को बर्बाद कर देती है। आपका एक गलत शौक पूरे परिवार को शोक में डाल सकता है। व्यक्ति भूलचूककर नशा करने की आदत जीवन में न डाले क्योंकि नशा नाश की निशानी है। नशा दांत से लेकर आंत तक, दिल से लेकर दिमाग तक नुकसान ही नुकसान करता है। अगर इन्हें जीते-जी छोड़ देंगे तो हम जीत जाएंगे नहीं तो ये एक दिन मौत बनकर हमें छोड़ देंगे।

भीतर के भगवान को न चढ़ाएँ नशा-संतप्रवर ने कहा कि जिनके खान-पान का कोई पता नहीं होता उनके खानदान का भी कोई पता नहीं होता। इंसान मंदिर के भगवान को नशा नहीं चढ़ाता तो फिर भीतर के जीते-जागते भगवान को नशा क्यों चढ़ा देता है। जब मैं ग्यारह साल की उम्र में संसार को छोड़ सकता हूँ तो क्या आप इक्यावन साल की उम्र में एक बुरी आदत को भी छोड़ नहीं सकते। पाँच साल का छोकरा समझ गया कि नशा करना बुरी बात है लेकिन पचपन साल का डोकरा अभी भी समझ नहीं पाया कि नशा करना बुरी बात है। उन्होंने कहा कि एक महिला शराबी पति की पत्नी बनने की बजाय विधवा बनना ज्यादा पसंद करेगी क्योंकि शराबी के साथ रहने की बजाय विधवा रहने में ज्यादा सुख है। उन्होंने बहिनों से कहा कि अगर घर में कोई नशा कर रहा है तो एक बार वे घर में युद्ध जैसा मोर्चा खोल लें। खाना बनाना और खिलाना छोड़ दें। जब तक घर व्यसनमुक्त न हो जाए तब तक चुपचाप न बैठें।

संस्कारों के प्रति जागरूक रहिए-अभिभावकों को प्रेरणा देते हुए संतश्री ने कहा कि बच्चों को कार से पहले संस्कार दें। बच्चों को आजादी दें, पर अंकुश भी रखें। उन्हें गलत संगत से बचाकर रखें। शराबी बाप भी अपने बेटे का शराबी बनाना नहीं चाहेगा, पर शराबी दोस्त अपने दोस्त को शराबी बनाकर ही छोड़ेगा। उन्होंने कहा कि अगर बच्चे व्यसनों से घिर गए हैं तो हिम्मत करके उन्हें कहें कि वे या तो व्यसन छोड़ें या घर। बिगड़ेल बच्चों के बाप कहलाने की बजाय बिना बच्चों के रहना ज्यादा अच्छा है। साथ ही उन्हें सम्पत्ति के हक से भी वंचित रखें। अगर आप बच्चों को गलत दिशा में जाने से रोक नहीं सकते तो कृपया करके बच्चों को पैदा ही न करें। अगर आप खुद व्यसन करते हैं तो सावधान! आने वाले कल में आपके बच्चे आपकी बुरी आदतों के चलते आपका नाम लेने में भी शर्म महसूस करेंगे। याद रखें, व्यक्ति की सच्ची दीक्षा उस दिन होती है जिस दिन वह बुरी आदतों का त्याग कर अपने संस्कारों को सुधार लेता है।

संकल्प जगाइए, नशा हटाइए-संतश्री ने कहा कि जिस इज्जत को बनाने में सौ साल लगते हैं, नशे की एक आदत उसे पूरा मटियामेट कर देती है। शुरू में गम को भूलाने वाला नशा बाद में सबसे बड़ा गम बन जाता है। उन्होंने कहा कि गुटखा में से ट हटाइए, बोलिए फिर भी जी करे तो प्रेम से खाइए। दुनिया की सारी चीजें खींचने से लम्बी होती है, पर सिगरेट को खीचों तो…केवल वही छोटी नहीं होती वरन् जिंदगी छोटी होती है। व्यक्ति केवल एक बार इसे बनता हुआ देख ले तो उसे अपने आप नशे से नफरत हो जाएगी। व्यक्ति बुरी सोहबत से बचे, व्यसनों के परिणामों पर चिंतन करे, संकल्प शक्ति जगाए और गुटखा, सिगरेट, शराब जैसे दुव्र्यसनों को हमेशा के लिए लाइफ से गेट आउट कर दे।

जब संतप्रवर ने झोली फैलाकर सत्संगप्रेमियों से नशे का त्याग करने की गुरुदक्षिणा मांगी तो अनेक युवाओं और लोगों ने आजीवन नशे के त्याग करने के संकल्प लिए और सभी भाई-बहिनों ने हाथ खड़े कर नशे से सदा दूर रहने का मानस मनाया। इस अवसर पर संतप्रवर ने हम सबका एक ही संदेश: व्यसन मुक्त हो सारा देश का नारा दिया।
आज धर्म सभा में धरम चोपड़ा जितेंद्र तातेड पन्नालाल कोटडिया दिलीप छतीसाबोहरा अमन गुप्ता सहित कई युवा साथियों ने आज पान पराग, गुटका एवं जरदा न खाने का संकल्प खचाखच भरी धर्म सभा में उपस्थित जन समुदाय के बीच लिया

इस दौरान डॉ मुनि शांतिप्रिय सागर जी महाराज ने कहा कि खुशियाँ किसी के बाप की नहीं, अपने आपकी होती है। अगर हमारा फैसला है कि मैं हर हाल में खुश रहूँगा तो दुनिया की कोई ताकत हमें नाखुश नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि आनंद हमारा स्वभाव है इसलिए खाने को मिल जाए तो खाने का आनंद लें और न मिले तो उपवास का आनंद लें, चलें तो यात्रा आनंद लें और बैठें तो आनंद की यात्रा करें। शादी हो जाए तो संसार का आनंद लें और न हो तो शील का आनंद लें। व्यक्ति को हर परिस्थिति का आनंद लेने की कला सीख लेनी चाहिए। जो अपने आपको किसी भी हालत में प्रभावित होने नहीं देता वह सदा खुश रहता है।

उन्होंने कहा कि घर-परिवार के लोग तो जैसे हैं वैसे ही रहेंगे, इसलिए उनके सुधारने की भूल न करें। पूरी दुनिया को सुधारने का ठेका न तो भगवान का है न हमारा, पर अगर हमने खुद को सुधार लिया तो सदा खुश रहने में सफल हो जाएंगे। दुनिया में जो मिला है, जैसा मिला है, उसका स्वागत करना सीखें। अगर बेटा कहना माने तो ठीक और न कहना मानें तो सोचें कि रोज-रोज कहने की झंझट समाप्त हो गई। हमें कहीं सम्मान मिलने वाला, पर उसके बदले अपमान मिल जाए तो उसे सहजता से स्वीकार कर लें।

हमेशा मुस्कुराते हुए जिएँ: खुश रहने का मंत्र देते हुए मुनि प्रवर ने कहा कि मुस्कुराता हुआ चेहरा दुनिया का सबसे खूबसूरत चेहरा होता है। काला व्यक्ति भी जब मुस्कुराता है तो बहुत सुंदर लगता है, और गौरा अगर मुँह लटकाकर बैठ जाए तो बहुत भद्दा दिखने लग जाता है। इसलिए हर दिन की शुरुआत मुस्कुराते हुए करें। हमारे जेब में भले ही न हो मोबाइल पर चेहरे पर सदा रहे स्माइल। उदाहरण से सीख देते हुए संतप्रवर ने कहा कि जब हम फोटोग्राफर के सामने पांच सैकंड मुस्कुराते हैं तो हमारा फोटो सुंदर आता है और हम अगर हर पल मुस्कुराएंगे तो सोचो हमारी जिंदगी कितनी सुंदर बन जाएगी।

प्रवचन के बीच जब संत प्रवर ने जिएं ऐसा जिएं जो जीवन को महकाए…भजन गुनगुनाया तो श्रद्धालु हाथ उठाकर भक्ति में झूमने लगे। कार्यक्रम में संघ के अनेक सदस्य विशेष रूप से उपस्थित थे। मंच संचालन और संतों का स्वागत आभार अध्यक्ष महेंद्र दुग्गढ़ ने किया। घर को कैसे स्वर्ग बनाएं विषय पर सोमवार को सुबह 9:00 बजे ऋषभ नगर मैदान में होंगे विशेष प्रवचन और सत्संग – सोमवार को सुबह 9:00 बजे ऋषभ नगर मैदान में घर को कैसे स्वर्ग बनाएं विषय पर विशेष प्रवचन और सत्संग का आयोजन होगा।

ज्ञानचंद कोठरी, संतोष लोढ़ा, प्रवीण लोढ़ा उत्तम बरडिया, कांतिलाल बोथरा , पदम बरडिया, मनीष बोथरा, अमृत लोढ़ा, मनीष दुग्गड़ , विनोद तातेड़ ,दीपक चोपड़ा ,निर्मल लोढ़ा ,नरेंद्र चोपड़ा , प्रवीण बोथरा ,देवीचंद दुग्गड़, टीकम चोरडिया, योगेश बरडिया, उषा टावरी, जागेश्वर साहू , सुपारस गोलछा ,धर्मचंद लुनिया, रमेश चोपड़ा, नवीन बोथरा , राजेन्द्र पारख, भवरलाल पोरवाल।

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