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प्रेम प्रदर्शन की नहीं हृदय से अनुभूति की है वस्तु: साध्वी कंचनकंवर

प्रेम प्रदर्शन की नहीं हृदय से अनुभूति की है वस्तु: साध्वी कंचनकंवर
चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित साध्वी कंचनकंवर व  साध्वी डॉ.सुप्रभा ‘सुधाÓ के सानिध्य में साध्वी डॉ.उदितप्रभा ‘उषाÓ ने कहा कि सम्यकत्व आत्मा को शुद्ध और जीवन व्यवहार को सौम्य बनाता है। जहां सम्यकत्व है वहां अन्तर और बाहर में एकरूपता है। घृणा, वैरभाव दूर होकर प्रेम का उपासक बनता है। प्रेम सुई की तरह जोड़़ता है और द्वेष कैंची की तरह काटकर अलग करता है, दोनों परस्पर विपरीत है।
सभी महापुरुषों ने प्रेमभाव स्वीकार किया है। भीतर सद्भाव हो वहीं प्रेमपुष्प खिलते हैं। आज मानव बाहर से टिपटॉप दिखता है लेकिन भीतर से मानव का लोप है। प्रेम प्रदर्शन की नहीं, अनुभूति की वस्तु है। मन, वचन और काया में समानता हो तभी जीवनरूपी वीणा बजेगी। स्वार्थ में व्यक्ति अंधा हो जाता है।  
हृदय में प्रेम हो तो अन्य सद्गुण स्वत: ही आ जाते हैं। समाज में लोकप्रिय बनें लेकिन पहले परिवारप्रिय बनें। भाई की प्रगति देखकर द्वेष न करें, सद्भावना होने से घर में महाभारत नहीं होगी। हृदय संकुचित न होने दें, अपना व्यवहार सुधारें और सम्यकदर्शन को प्राप्त करें। पत्तल जैसी प्रीत न करें। प्रेम में पूरी दुनिया के प्रति वसुधैव कुटुम्बकम की भावना रखें तो मनुष्यजन्म सार्थक बन जाएगा।
साध्वी डॉ.इमितप्रभा ने कहा कि  जिस प्रकार आभूषण से शरीर, दान से धन, सुविचारों से मन और सत्य से वाणी सुशोभित होती है वैसे ही सज्जन सत्कार्यों से सुशोभित होता है। प्रभु ने सम्यकत्व के पांच भूषण बताए हैं पहला- जिनशासन में निपुण हो। दूसरा जिनशासन की प्रभावना करे। तीसरा तीर्थ सेवा करे। चौथा धर्म में स्थरीकरण करे।
पांचवां जो जिनप्रभु की भक्ति करे। जो साधना कर रहे हैं उसमें निपुण और कुशल तथा सैद्धांतिक बातों को समझने में चतुर होना चाहिए। जो अधर्मी को कुव्यसनों से हटाकर सन्मार्ग पर लाए वह प्रभावना है। पू.गुरुवर्या ने काश्मीर में अनेकों को हिंसा से अहिंसा में लेकर आए और जिनधर्म की प्रभावना की।
प्रभु ने कहा है चार तीर्थ के सानिध्य में धर्मचर्चा करना, दर्शन करना, श्रावक-श्राविकाओं को साता पहुंचाना तीर्थ सेवा है। जिनवाणी सुनकर चिंतन-मनन करना और जीवन में उतारना है। धर्ममार्ग से विचलित होनेवाले को सन्मार्ग बताकर धर्म पर स्थिर करनेवाला जिनशासन का भूषण है।
जिनदेव, गुरु और केवली भगवंत का आदर-सम्मान, भक्ति करना है। जिनधर्म में आडम्बर, प्रदर्शन, चमत्कार नहीं बल्कि प्रभु भक्ति है। भक्ति से आचार्य मानतुंग की बेडिय़ां स्वत: टूट गई। इन पांच भूषणों को जीवन में धारण कर और आचरण करें तो जिनशासन के भूषण कहलाएंगे।
दक्षिण पश्चिम दिशा में सामूहिक बारह लोगस्स साधना करवाई।  धर्मसभा में प्रियंका सिंघवी, पूजा लोढ़ा, आनन्द, कल्याण चोरडिय़ा ने गुरुणीजनों के प्रति विदाई भजनों से अपने भाव रखे। तपस्वी तारादेवी देसरला तंडियारपेट का चातुर्मास समिति द्वारा सम्मान किया। धर्मसभा में चिदंबरम, दुर्ग दुर्ग, छत्तीसगढ़ सहित अनेक स्थानों से श्रद्धालु आए।
8 नवम्बर को पारसमल तोलावत द्वारा बिना दवा रोगोपचार विषयों पर विशेष व्याख्यान होगा। 9 नवम्बर को श्री उमराव अर्चना चातुर्मास समिति द्वारा चातुर्मास काल में सभी समितियों, सहयोगियों और कार्यकर्ताओं के प्रति आभार ज्ञापन और दोपहर संगीत अंताक्षरी प्रतियोगिता होगी।

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