पर्युषण पर्व के अंतर्गत कांकरिया गेस्ट हाउस, किलपाक में श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ,तमिलनाडु के तत्वावधान में स्वाध्यायी बन्धुवर भगवान महावीर जैन विद्यापीठ के प्राचार्य श्री प्रकाशचंदजी जैन जयपुर द्वारा व्याख्यान माला में स्वाध्याय की महत्ता बताते हुए कहा कि अष्ठ पाहुड ग्रंथ में जिन वयण ओसहणँ अर्थात जिनवाणी के वचन राम बाण ओषधि के समान हैं,अमृत सम हैं | दुःखो को क्षय करने की कला जिनवाणी में हैं | तीन प्रकार से प्रकाश प्रज्वलित होता हैं | माचिस की तीली से जिसका प्रकाश अल्प समय तक रहता हैं |
दीपक का प्रकाश,जब तक दीपक में तेल रहता हैं और तीसरा रत्न मणि का प्रकाश जो हमेशा रहता हैं | इसी तरह क्षायिक सम्यक्त्व का प्रकाश हमेशा रहता हैं,स्वाध्याय भी एक ऐसा ही दीपक हैं | उतराध्यन सूत्र के छब्बीसवें अध्ययन में साधक की दिनचर्या में दिन के प्रथम प्रहर में स्वाध्याय द्वितीय प्रहर में ध्यान तृतीय प्रहर में आहार व चतुर्थ में स्वाध्याय रात्रि काल में क्रमशः स्वाध्याय,ध्यान,निद्रा से मुक्ति व रात्रि के अन्तिम प्रहर में स्वाध्याय बताया हैं | अलग -अलग चिंतकों ने आत्मा के अलग-अलग अर्थ बताये हैं | किसी ने शरीर को ही आत्मा माना हैं तो आत्मा की शक्ति को पंचभूत मिश्रण से संतुलित शक्ति तो किसी ने मन ही आत्मा हैं,बुद्धि ही आत्मा हैं | पर जैन दर्शन के अनुसार प्रभु द्वारा फरमाए गये पर श्रद्धा करने वाले चिन्तको ने अनुभूति के आधार पर बताया कि आत्म तत्व कभी नष्ठ नहीं होता,आत्मा शाश्वत हैं | आचारांग सूत्र में बताया हैं कि जो आत्मवादी बनता हैं वो लोक के स्वरुप को जानता हैं और जो लोक के स्वरुप को जानता हैं वो क्रमशः कर्म को जानता हैं फिर क्रियाओं को जानता हैं,वो जानता हैं कि क्रियाओं से कर्म का बंध होता हैं | पर्युषण पर्व के दिनों में स्वाध्याय करना क्रियात्मक पक्ष हैं पर जो दैनिक रुप से स्वाध्याय करता हैं वो स्वाध्यायी हैं |
आगम वांचन क्यों आवश्यक हैं,दैनिक आगम वांचनी से कर्मो की निर्जरा, श्रुत ज्ञान की परम्परा की निरन्तरता, श्रुत की आशातना नहीं होगी, वो चतुर्विध संघ का आधारभूतआलम्बनभूत बनता हैं और पांचवा मुख्य कारण वो व्यक्ति कर्मों की महा निर्जरा करता हैं | अर्ध मागधी भाषा कठिन नहीं हैं, आवश्यकता है पुरुषार्थ करने की | आगम को मूल रुप मे पढ़ने के लिए भाषा सीखने के भाव मजबूत हो | श्रावक के दैनिक रुप से छह कार्य करने आवश्यक हैं,उनमे तीसरा कार्य स्वाध्याय बताया गया हैं | स्वाध्याय के पांच भेद वांचना, पृच्छना, परिवर्तना, अनुप्रेक्षा व धर्म कथा की विस्तार पूर्वक विवेचना करते हुए बताया कि धर्मकथा को तीर्थंकर गोत्र के बंध के बोल में एक बोल बताया हैं | स्वाध्याय के क्षेत्र में पूज्य प्रवर्तक श्री पन्नालालजी म.सा ने शुरुआत की व आचार्य पूज्यश्री हस्तीमलजी म.सा के असीम पुरुषार्थ रुप से स्वाध्याय की गति बढ़ती जा रही हैं व उनकी दूरदर्शिता से चिन्तन आज पुष्पित- पल्लवित हैं |
स्वाध्याय के क्षेत्र में आचार्य श्री के द्वारा दृढ़ता पूर्वक लिए गए निर्णय के परिणामस्वरूप आज स्थानकवासी परम्परा के 26 विभिन्न स्वाध्याय संघो के अन्तर्गत हजारों की संख्या में स्वाध्यायी सेवा देते हुए जिनशासन की सुन्दर जाहोजलाली कर रहे हैं | आचार्य श्री हस्तीमलजी म.सा के द्वारा वर्ष 1982 में जलगांव – महाराष्ट्र के चातुर्मास में किये गए पुरुषार्थ का उल्लेख करते हुए उनके उपकारों का स्मरण किया | युवा स्वाध्यायी श्री विनोदजी जैन ने अंतगड सूत्र के मूल व अर्थ का वांचन करते हुए सुन्दर विवेचना की और वीरगुण गौरव गाथा का वांचन किया | सभी श्रदालुओं ने तीर्थंकर चालीसा व संयम चालीसा की भक्तिमय स्तुति की |
श्रावक संघ तमिलनाडु के कार्याध्यक्ष आर नरेन्द्र कांकरिया ने जानकारी दी कि इस अवसर पर श्राविका मण्डल द्वारा धार्मिक प्रतियोगिता का आयोजन किया गया | प्रतिक्रमण व ज्ञानचर्चा के पश्चात श्री भोपालगढ़ जैन विद्यालय के अध्यक्ष श्री प्रसनचन्दजी ओस्तवाल ने कवि सूर्यभानुजी की देव-गुरु-धर्म व वैराग्य से ओत-प्रोत अनेक रचनाओं को मंत्र मुग्ध कर देने वाली राग में सुनाया |
राष्ट्रीय संघ के पूर्व संघाध्यक्ष श्री पी एस सा सुराणा, नवरतनमलजी बागमार, डी अशोकजी बागमार,प्रेमजी बागमार, प्रेमकुमारजी कवाड़,कांतिलाल जी तातेड़, बादलचंदजी बागमार, गौतमचंदजी बागमार, इन्दरचंदजी सुराणा, भागचंदजी बाबेल जी, राजेन्द्रजी बागमार, ज्ञानचन्दजी ओस्तवाल, मनोजजी मुथा मदनलालजी बोहरा, बुधमलजी बोहरा, महावीरचंदजी बोहरा, सुनीलजी सांखला, उम्मेदराजजी हुंडीवाल, सुगनचंदजी बोथरा, विक्रमजी बागमार सहित चेन्नई महानगर से अनेक श्रद्धालुओं की उपस्थिति प्रमोदजन्य रही | प्राचार्य श्री प्रकाशचंदजी जैन ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाने के पश्चात मांगलिक सुनाई |