बड़े आनंद एवं उत्साह पूर्वक गुरुणी मैय्या महासाध्वी श्री वीरकांता जी महाराज आदि ठाणा – 4 का चतुर्मास चल रहा है ।
आज महासाध्वी डॉ. अर्पित जी ने फरमाया है -पर परिवाद
पर परिवाद अर्थात इधर-उधर की बातें, बुराई करना, व्यर्थ की बातें करके स्वयं का दिमाग और दूसरों का दिमाग भी खराब करना और वातावरण को दूषित करना पर परिवाद का पाप कहलाता है ।
निंदा करना भी इसी श्रेणी में आता है निंदा करने से निंदा करने वाला व्यक्ति खुद बुराइयों का शिकार हो जाता है। दूसरों की जिन बुराइयों का वो बखान करता है एक दिन वो सभी बुराइयां उसके स्वयं के भीतर भी आ ही जाती है ।
अब हमने यह सोचना है कि दूसरों की बुराईयां देख-देख कर हम कहीं अपनी अच्छाइयां तो नहीं छोड़ रहे और अपने देश, समाज के लोगों की बुराइयां अपने भीतर तो नहीं ला रहे हैं। ये बुराइयों को छोड़ना है और गुणगान करने की एवं प्रशंसा करने की आदत डाले। प्रशंसा करने से प्रशंसा ही होगी और बदले में हमें भी प्रशंसा ही मिलेगी ।
संघ के प्रधान पप्पी जैन जी ने बताया की 12 घंटे का नवकार महामंत्र का जाप जैन सभा में बड़े ही सुन्दर रूप से गतिमान है ।