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पुण्य के उदय काल में रहे विशुद्ध भाव : जिनमणिप्रभसूरिश्वर

पुण्य के उदय काल में रहे विशुद्ध भाव : जिनमणिप्रभसूरिश्वर

जीवन में पुण्य, प्रसन्नता, प्रेम तीनों तत्वों की आवश्यकता बताते हुए दी प्रेरणा

चेन्नई : विनय से धर्म का प्रारम्भ होता है। विनय नीव के समान है। विनय अनुमोदना का सूचक तंत्र है। उपरोक्त विचार श्री मुनिसुव्रत जिनकुशल जैन ट्रस्ट के तत्वावधान में श्री सुधर्मा वाटिका, गौतम किरण परिसर, वेपेरी में धर्मपरिषद् को संबोधित करते हुए गच्छाधिपति आचार्य भगवंत जिनमणिप्रभसूरीश्वर म. ने उत्तराध्यन सूत्र के प्रथम अध्ययन के पहले गाथा की विशेषता बताते हुए कहें।

 आचार्य भगवंत ने आगे कहा कि सुख का अनुभव तभी है, जब दु:ख हो। रात का अंधेरा न हो तो प्रकाश की महत्ता नहीं रहती। दोनों के होने पर ही एक दूसरे का प्रभाव रहता है। क्या करना है? यह स्वयं के संकल्प की सोच है।

आचार्य प्रवर ने जीवन में पुण्य, प्रसन्नता, प्रेम तीनों तत्वों की आवश्यकता को बताते हुए कहा कि पुण्य कदम कदम पर जरूरी है, जब तक हम सिद्ध नहीं बन जाते। खुद को दिया गया सम्मान गौरव की अनुभूति करवाता है और दूसरों से प्राप्त सम्मान अभिमान पैदा कर सकता है। पुर्व जन्म के पुण्योदय से हमें मनुष्य जन्म मिला। वितराग वाणी सुनने का अवसर मिला। लेकिन इसका ध्यान रहे कि हमारा पुण्योदय विशुद्ध रहें। पुण्य उदय के साथ पाप कर्मों का बंध न हो, इसका सदैव चिन्तन रहे, स्मरण रहे। पुण्य की विशिष्टता पुर्व जन्म का परिणाम है और विशुद्धता वर्तमान का पुरुषार्थ है।

★ मनुष्य जन्म का मिलना मुश्किल

आचार्य भगवंत ने विशेष प्रेरणा देते हुए कहा कि मनुष्य जन्म का मिलना मुश्किल है, उससे भी मुश्किल परमात्म वाणी का श्रवण करना, उससे मुश्किल परमात्म वाणी पर श्रद्धा का होना और सबसे मुश्किल है परमात्म वाणी पर श्रद्धा करके उस पर आचरण करना। हमें जो यह अवसर मिला है, उसका सदुपयोग करें। प्रति क्षण शुभ अधव्यवसाय, पवित्र विचारों में रहे।

★ सदैव रहे प्रसन्नचित्त

प्रसन्नता का विवेचन करते हुए आचार्यवर ने कहा कि पुण्य मिल गया, जीवन में प्रसन्नता भी जरूरी है। ममण सेठ के पास पुण्योदय से सम्पदा बहुत अधिक थी, पर जीवन में प्रसन्नता नहीं थी। वहीं पुर्णिया श्रावक के पुण्योदय से सम्पदा कम थी। रुई काट कर अपनी जीविकोपार्जन करता, पर वह सदैव प्रसन्नचित्त रहता, इसलिए भगवान महावीर के प्रमुख श्रावकों में उसका नामोल्लेख होता है। तथ्य, पथ्य समझ में आने के बाद अनुकूल या प्रतिकूल हर परिस्थितियों में शिकायत नहीं करनी चाहिए, समाधिस्थ रहना चाहिए। प्रसन्नतापूर्वक जीवन निर्वाह करना चाहिए। सकारात्मक चिन्तन के साथ एक नहीं किये कार्य पर विचार करना चाहिए और नव किये गए कार्यों के लिए सामने वाले को धन्यवाद देना चाहिए। मन का स्वभाव है अभाव को देखना, पर हमें मिले हुए में प्रसन्न रहना चाहिए। प्रभु को धन्यवाद देना चाहिए।

★ प्रेम में सौदा या स्वार्थ का समावेश न हो

 तीसरे तत्व प्रेम की विवेचना करते हुए कहा कि प्रेम शब्द का अर्थ है प्रेम प्राप्त करना और दूसरों को प्रेम देना। 20 स्थानक पदों की सम्यक् आराधना भाव दया, करुणा के साथ संपूर्ण संसार के जीवो के प्रति अनुकम्पा रहने पर तीर्थंकर गोत्र का बंधन हो सकता है। हम सभी जीवो को अपने मूल तत्व प्रेम को समझना चाहिए। प्रेम सौदा ना हो, सौदा बाजी ना हो। संसार में प्रेम के साथ स्वार्थ चलता रहता है। पिता भी विनीत पुत्र को ज्यादा प्रेम करता है और कुछ कम विनित को कम। भगवान महावीर की करुणा परम् समर्पित शिष्य गौतम और भगवान पर तेजोलेश्या फैंकने वाले गौशालक दोनों पर समान दया भाव था, प्रेम था। हमारी कषाय वृतियों पर अंकुश रहे। प्रेम का मिलना पुण्य का परिणाम है और प्रेम देना पुरुषार्थ का परिणाम है। *जीवन में शिकायतों की बहुलता होने पर प्रेम, प्रसन्नता के साथ पुण्य का भी क्षय होता है।*

*★ माँ के हाथ का बना खाना देता जीवन को पौषण*

 गुरु भगवंत ने विशेष पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि बाहर होटलों का खाना पेट भर सकता है लेकिन प्रसन्नता नहीं दे सकता। वहीं घर में माता, बहन, पत्नी, पारिवारिक जनों के हाथ का, हृदय की गहराई से प्रेम से बना हुआ खाना खाने से तृप्ति मिलती है, प्रसन्नता बढ़ती है, सात्विक सुख मिलता है। जीवन को पोषण मिलता है।

★ गुरु होते हितकारी

अपने गुरु के उपकार को बताते हुए कहा कि मैने तेरह वर्ष की अवस्था में संयम जीवन स्वीकार किया। मेरे गुरु मराज आचार्य जिनकांतिसूरिश्वरजी का वरदहस्त भरा आशीर्वाद भी मिला, तो उपालम्भ भी मिला। लेकिन जो मुझे विनय सिखाया और मैने उसका पालन किया, वह मैरे जीवन के परम् सौभाग्यशाली क्षण थे। गुरु के द्वारा आहार में रोटी के साथ जो वात्सल्य, प्रेम मिलता, वह मुझे आत्मिक प्रसन्नता देता।

*शनिवार को होगी चल प्रतिष्ठा*

प्रवचन परिसर में चातुर्मास के दौरान साधना, आराधना हेतु परमात्मा मुनिसुव्रतस्वामी, गौतमस्वामी एवं दादा गुरुदेव की चल प्रतिष्ठा प्रवचन के पश्चात शनिवार को विधि विधान के साथ संपन्न होगी। यह सूचना ट्रस्ट के महामंत्री पदम कुमार टाटिया ने दी।

समाचार सम्प्रेषक : स्वरूप चन्द दाँती

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