Sagevaani.com /Chennai: किलपाॅक श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ में विराजित योगनिष्ठ आचार्य केशरसूरी समुदाय के वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य मुनि धन्यप्रभ विजयजी ने प्रवचन में कहा कि लोभ का कोई अंत नहीं होता। लोभ को दूर करना है तो संतोष गुण को अपनाना जरूरी है।
उन्होंने सुख और आनंद में अंतर बताते हुए कहा कि सुख वह है, जो प्रतिबंधात्मक होता है और आनंद वह है जो प्रतिबंधात्मक नहीं होता है, उसमें किसी तरह की कंडीशन नहीं होती है। बहुत से लोगों को सुख में ही आनंद मिलता है क्योंकि पैसा में ही सुख है, वे यह मान लेते हैं। उन्हें यह स्वीकार करना चाहिए कि पैसे में सुख नहीं है। पैसा जब तक रहेगा व्यक्ति का जीवन तनाव से भरा ही होगा। उन्होंने कहा आनंद समाधि देने वाला होता है।
समाधि के अनुभव को पाने के पांच तत्व बताए गए हैं पिंडबल, पीठबल, प्रज्ञाबल, पुण्यबल और परमात्मा का पीठबल यानि भगवान की कृपा। पिंडबल यानी शरीर की शक्ति। व्यक्ति के पास निरोगी काया नहीं है, तो वह सुख व आनंद का अनुभव नहीं कर सकता। पीठबल यानी परिवार का सहारा। व्यक्ति को स्वजन की सहायता में तत्पर रहना चाहिए, तभी वह आनंद में रह पाएगा। प्रज्ञाबल यानी बुद्धि का बल। बुद्धि का बल यानी विनय – विवेकयुक्त बुद्धि। बिना विनय की बुद्धि तलवार जैसी होती है और बिना विवेक की बुद्धि सांप जैसी होती है।
उन्होंने कहा व्यक्ति के पास पुण्यबल हो तो सब कुछ अच्छा होता है। पुण्यबल के कारण ही व्यक्ति सफलता प्राप्त करता हैं। पूर्वजन्म के पुण्य के कारण ही यह होता है। यदि पुण्य को बढ़ाना है तो जो अनुकूलता मिली है, उसका सदुपयोग करना चाहिए। पुण्य खाते में जमा रहेंगे, तो हर चीज मिल सकती है। जीवन में जो दुःख, अन्याय, अपमान होता है, उन्हें सहन तो स्वयं को ही करना पड़ेगा। भगवान कहते हैं मैं तुझे समाधि दे दूंगा, यदि तुम जीवन की अनुकूलताओं का सदुपयोग करोगे। ये पांच चीजें आपके जीवन में होगी तो ही आनंद प्राप्त कर पाएंगे।