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ज्ञान वाणी

पाप-पुण्य का हिसाब रखना जरूरी : आचार्य पुष्पदंत सागर

चेन्नई. कोण्डितोप स्थित सुंदेशा मूथा भवन में विराजित आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा, पाप-पुण्य का हिसाब रखना जरूरी है। किसी का अपमान किया हैं तो उससे क्षमा मांगें। यही पुण्य-पाप का हिसाब है।

यदि आदमी परमात्मा की भक्ति में डूब जाए, एकाग्र हो जाए, शुद्ध एवं शुभ भावों से भर जाए, तो उसके मन एवं आत्मा से कई प्रकार का अज्ञान, अंधकार, पाप एवं विचार समाप्त हो जाते हैं। पाप की विशेषता है कि वह जाने से पहले अपनी संतति छोडक़र जाता है यानी दूसरे पाप को छोड़ जाता है। हमारे जन्म-मरण की परम्परा सदियों पुरानी है।

हमने सदियों से बाहर की गंदगी को अंतर में भरने का प्रयास किया है और अंतस के प्रकाश को बाह्य वस्तु देखने में बर्बाद किया है। हिंसा, झूठ, चोरी, क्रोध, मोह, माया ये सब पाप कर्म हैं। शरीर रूपी घड़ा सोने के समान है मगर हमने उसमें जहर का कचरा भर रखा है। आदमी अहंकार के जोश में धर्म का अपमान करता है। जवानी के जोश में बुढ़ापे का तिरस्कार करता है।

संपत्ति के मान में गरीबों का तिरस्कार करता है। कमजोरों को नजरंदाज करता है। दूसरों का अपमान करते समय अपने पुण्य को जलाकर राख कर अपमान को आमंत्रित करते हैं। संसार गेंद की भांति है। पाप की दीवार पर भारो तो लौटकर स्वयं के पास आती है। प्रकृति को प्रदूषण मुक्त बनाने वाला व्यक्ति यदि प्रकृति को पाप मुक्त, कषायमुक्त, लोभ मुक्त बनाने के लिए जरा भी प्रयास नहीं करता, तो यह आश्चर्य की बात है।

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