अक्कीपेट में शान्तिस्नात्र पूजन का हुआ आयोजन
बेंगलुरु। आचार्यश्री देवेंद्रसागरसूरीश्वरजी म.सा. एवं साध्वीवर्या मोक्षज्योतिश्रीजी म.सा. की शुभ निश्रा में अक्कीपेट में सुश्रावकद्वय शांतिचंदजी-धर्मीचंदजी की पुण्यस्मृति में शांति स्नात्र पूजन का आयोजन सोमवार को धार्मिक उल्लास से हुआ। पूजन के अंतर्गत आचार्यश्री ने फ़रमाया कि जो इस संसार में जन्मा है, उसका मरना तय है। मृत्यु के मुख से कोई ना तो बचा है और ना ही बचेगा।
उन्होंने कहा कि ये संसार का नियम है कि जो आया है उसकी मृत्यु कभी ना कभी किसी ना किसी बहाने से जरूर आएगी। जन्म तो हमारे हाथ में नहीं है, चाहे कहीं भी हो, लेकिन जन्म के बाद जीवन को ऐसा बना लेना चाहिए कि अंत में भगवान की याद बनी रहे।
उन्होंने कहा कि सांसारिक वस्तुएं टेढ़ी हो सकती हैं, लेकिन संसार बनाने वाला टेढ़ा नहीं हो सकता। इंसान टेढ़ा है, लेकिन उसका मन टेढ़ा नहीं है। जीवन का गणित बहुत उल्टा है। जन्म को सुधारने से ही, मृत्यु सुधरती है। आचार्यश्री ने यह भी कहा कि मनुष्य वर्तमान सुधारे तो भविष्य सुधरता है।
संसारी और संन्यासी में इतना फर्क है कि गृहस्थ के पैर टिकते हैं, संन्यासी के पैर नहीं टिकते। गृहस्थ आज को तथा संन्यासी कल को सुधारता है। अपने प्रेरणादायी संदेश में देवेंद्रसागरजी ने कहा कि जीवन में कुछ बनना चाहते हो, तो चार चीजों को त्यागना पड़ेगा, जिसमें पहली चीज ये है कि किसी काम को करने से पहले यह भावना मन से निकाल दो कि कोई क्या कहेगा?
दूसरी बात यह कि मन में यह भावना कभी न आने दो कि यह मुझसे नहीं होगा? तीसरा भाग्य को कभी मत कोसो कि भाग्य खराब है? चौथा किसी भी काम को करने से पहले यह मत बोलो कि मन नहीं है? यदि मनुष्य का लक्ष्य पवित्र हो, इरादा नेक हो तो बिना पीछे देखे अपने लक्ष्य की ओर ही देखना चाहिए, क्योंकि मनुष्य को यदि ऊंचाई को हासिल करना है, तो मन पर विजय पाना बहुत जरूरी है।