जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने महापर्व पर्युषण पर्व के सम्बन्ध में बोलते हुए कहा कि परि उपसर्ग वस धातु अन प्रत्यय मिलाकर इस शब्द का निर्माण हुआ है! जिसका भावार्थ है सभी तरह से मन को हटाकर पूर्णतः अपने आप में अर्थात आत्मा के समीप रहना आत्मा का ही चिंतन मनन करना, हम अनन्त काल से शरीर व शरीर से सम्बंधित पदार्थों का ही संग्रह करते रहे खाना पिना कमाना तन को अच्छा रखना ही हमारा भव भव में एकमात्र लक्ष्य रहा है!
प्रभु महावीर ने पर्युषण के इन आठ दिनों में आत्मपर कार्य करने की प्रेरणाएं प्रदान की है! जैन इतिहास इस बात का साक्षी है कि राजा महाराजा सम्राट व तत्कालीन उद्योगपति लोग अपने सारे लौकिक कार्य बन्द कर इन दिनों में आत्मा लोकन में लग जाते थे! मैं वास्तव मे कौन हूं मेरी आत्मा कहाँ से आई है भविष्य मे यहाँ से मरकर कहाँ जाँऊगा! यदपी ये बातें असम्भव सी लगती है किन्तु धर्म का ज्ञाता इन बातों को आसानी से ज्ञात कर सकता है इसके लिए आवश्यक है अपने भीतर अवलोकन करने की!
पर्व की व्याख्या करते हुए मुनि जी ने लोकोत्तर पर्व बतलाते हुए इन पर्युषण के पावन दिनों मे तप जप सामायिक साधना संवर दान पुण्य व जीवदया के शुभ कार्यों की प्रेरणा प्रदान की! सभा मे साहित्यकार सुरेन्द्र मुनि जी ने अंतगढ़ सूत्र का विधिवत प्रारम्भ किया जिसके अंतर्गत उन त्यागी मोक्षगामी आत्माओं का उल्लेख किया गया! संसार की असारता का ख्याल कर के उन जीवों ने इसी भव मे मोक्ष गति को पालिया था, इन आठ दिनों मे क्षमा भाव रखते हुए संसार के समस्त जीवों के सुखी रहने की शुभ कामनायें की जाती है! बड़ी संख्य में जनता सत्संग का लाभ उठाती है! महामंत्री उमेश जैन ने सभी का हार्दिक स्वागत किया!डाक्टर सुभाष जैन ने प्रभावना का लाभ लिया!