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धर्म के बिना जीवन का कोई महत्व नहीं: जयतिलक मुनिजी

धर्म के बिना जीवन का कोई महत्व नहीं: जयतिलक मुनिजी

ए यम के यम स्थानक नार्थ टाउन में गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने कहा कि अतिथि संविभाग व्रत का निरुपण भगवान ने किया। कहते हैं श्रावक के 12 व्रतों को सुनकर समझकर अपनाना चाहिए। व्रत पालन से जीवन धर्म के निकट रहता है। धर्म से ही जीवन सुन्दर व सार्थक लगता है।

धर्म के बिना जीवन का कोई महत्व नहीं। संसार में रहते हुए भी जीवन में धर्म व्रत अवश्य धारण करना चाहिए। धर्म के बिना जीवन प्रिय नहीं लगता। धर्म व्रत धारण करने से संसार में सम्मान बढ़ता है। श्रावक भी धर्म पालन से मोक्ष मार्ग की ओर आगे बढ़ता है। धर्म पालन से व्रत अंगीकार करने से जीवन मर्यादित होता है।

जिससे संसार के बहुत सारे पाप खत्म हो जाते हैं। जिससे सभी जीव सुखी होते हैं धर्म ध्यान करने से अभयदान की वृद्धि होती है। धर्म सभी के लिए कल्याणकारी व हितकारी है। अतिथि यानि जिसके आने की तिथि निश्चित न हो। परंतु आज परिवर्तन आ गया है। पहले बिना सुचना के अतिथि आते थे अतिथि के आने से श्रावक प्रसन्न होते थे। पंच महाव्रत मुनिराज भी श्रावक के लिए अतिथि है। है। वैरागी भी अतिथि है उन्हें पढ़ाना, ज्ञान सीखाना, दीक्षा दिलाना भी सुपात्र दान है। पर आज श्रावक के घर मेहमान आये तो होटल का रास्ता दिखा देते हैं और चातुर्मास में आये श्रावक को भोजनशाला का रास्ता दिखा देते हैं। जैन श्रावक श्राविका का धर्म है भावना भाना।

गोच्छरी काल के समय घर का दरवाजा खुला रखना चाहिए जिनके मन में प्रबल भावना होती है उनके मन के द्वार ही नही घर के द्वार भी खुले रहते है ऐसे आहार वोहराने से प्रबल पुण्य का बंध होता है चारित्र की प्राप्ति होती है। सुपात्र दान देने वाले का मोक्ष निश्चिंत हो जाता है। ये दान कई अन्तरायों के कर्म काटने में बहुत बड़ा सहयोगी बनता है। द्रव्य शुद्धि, पात्र शुद्धि और भाव शुद्धि ये तीनों ही आवश्यक है। दान का पश्चाताप नहीं करना चाहिए। अध्यक्ष अशोक कोठारी ने बताया कि रविवार को वीर लोकशाह जयंती और विदाई समारोह का आयोजन नार्थ टाउन स्थानक में होगा।

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