सौभाग्य प्रकाश संयम सवर्णोत्सव चातुर्मास खाचरोद
पुज्य की दर्शन मुनिजी मासा जीव 9 प्रकार से दर्शनावर्णीय कर्म भोगता है। 1 निद्रा- 2 निद्रा-निद्रा 3 प्रचला -बैठे-२ नींद लेना।
जो पाप की क्रिया में संलग्न रहता है उनका सोना अच्छा है , धर्म के कार्य में संलग्न रहता है उसका जागृत रहना अच्छा !
जयंती श्राविका ने भगवान से प्रश्न किया ? *जीव क्यों किस कारण से भारी होता है किस कारण हल्का होता है?* जो 18 पाप का सेवन करता है वह जीव भारी हो जाता है जी 18 पाप स्थान से छुटजाता है, निवृत्त हो जाते है तो जीव हलका हो जाता है।
जीव को संथारे के पहले 18 पाप का त्याग कराया जाता है दर्शनावर्णीय कर्म उदय होता है तो नींद आती है। त्याग का अनुमोदन करता है जीव कर्म की *निर्जरा* करता है और पाप का अनुमोदन करना की कर्म का *बंधन* कराता है। *अनुमोदन* करके कर्म बांध लेते हैं। हम पाप में घुमते रहते है सलग्नन रहते है, अपने 18 पाप को लिखना चाहिए दिन भर में। हम 18 पाप का चिंतन करे। रोज लिखे। हम जो धर्म करते है वह लिखते है लिखने से *अभिमान* जाग जाता है। अपनी आत्मा के कल्याण के लिये तपस्या की । कर्म को तोड़ने के लिये अन्तगढ़ में रानीयों ने कठिन तप, तपस्या की। हम दिखावे के लिये तपस्या करते तो नही?
*मोर*- पक्षी को नींद नहीं आती बरसात के कारण नाचने लगता है खुशी से अपने पंख फैला लेते है। स्वभाव बदला नहीं। पंख लगाने से कोई मोर नहीं होता,
*पूज्य प्रवर्तक की प्रकाश मुनि जी मा सा*– धर्म का उपदेश साधु के लिये है कि श्रावक के लिये हे?
जो बाते साधु के लिये है वह गृहस्थ के लिये है, कच्चा पानी तुमको नहीं पीना की साधु को नही पीना। जीव, ओर संत को भगवान उपदेश करते है
*मूल भूत 8 तत्व है* जो भगवान फरमाते है। *संति,मुक्ति विरति, क्षमा, निर्वाण, सोच, सरलता, कोमलता ,लघुता* इन बोल पर मुनि को उपदेश करना। *16 शताब्दी में उपाध्याय*
*यशोविज जी* वे ठोस विद्वान थे। न्याय दर्शन में पेठ रही। ज्ञान का अभिमान हो गया। कभी आनंद घन जी से मिलो। वे जंगलों में रहते थे। आजकल हम क्वान्टीविटी वाले लोग है क्वालिटी कम है , वे चिंतन करते हैं। हमको जाना , सुनना है, आदत हो गई। नियम, विधि, विवेक सभा में कब प्रवेश करना? विश्रम के समय करना।
यशो विजय जी आनन्दघन जी की बहुत समय तक चर्चा चली। आपको आता क्या है? वे गुस्से में नहीं आये आपसे सीखना है, जाओ दिल्ली वहाँ पंडित जी शास्त्री जी है उनसे सीखो। पंडित जी से कहते है कि में आगम पढ़ने आया हूँ।
पहले सावन-भादवा में बाहर महीने में बाहर निकलते नहीं। थे। धर्म को जीते थे। वाहन का उपयोग नहीं करते थे।
पंडित जी यशोविजय जी से कहते है कि में *दशवेकालिक सूत्र* पहले पढ़ाता हुँ. उसके बाद में भगवती सुत्र पढ़ेगे। 4 अध्ययन में 4 महीने बीत गये। जिसे सामान्य समझता था उसमें इतना ज्ञान होगा ५. गुरुदेव (आचार्य श्री उमेश मुनि जी महारासा) ने *जिन आगम चिंतन* लिखा ! जो ज्ञान में जीता है वह बता सकता है।
*संयोगा विप्प मुक्कस* इन आठ अक्षर पर दूसरा चार्तुमास पूरा हो गया
एक विद्वान ने कहा कि विद्वता हे बोले- आपका एक घंटे प्रवचन सुनना चाहते है जिसमें काना, मात्रा, नहीं आये।(कमल, चल) उन्होने बोला …तत्काल बोलना है। क्या विद्वता होगी, ठोस ज्ञान होगा।
*आठ विषय* में वितराग का ज्ञान आ जाता है। वितरण की वाणी रत्न ओर लाल से कम नही अनुप्रेक्षा, चिंतन करो। पोथा कल्याण नही करेगा *जो चिंतन करेगा* वह कल्याण करेगा, वितराग की वाणी परम् सहायक है। यह woker जैसा, लकड़ी जैसा है आत्म बल किसका चाहिए? आत्मबल कमजोर हो वह जवानी में बुढा है.
*आत्म अनुप्रेक्षा* -देखना, पुखरा रूप से, गहराई से, चारों तरफ से बन्द करके विचार करना।
*प्रतिसंलिनता* पांचो इंद्रियों के विषय को रोककर अंदर उतरना ।
करो *40 लोगस्स* का ध्यान निश्चित *झपकी* आयगी। जागृत अवस्था में अनुप्रेक्षा करे उसका आनंद आता है। *धर्म का कीर्तन करे,* महिमा करे शब्दो के द्वारा दुसरे के गुणगान कर सकते है, परमात्मा के गुणगान जब कर सकेंगे.. जब आपको उसमें रस आयगा कल्याण मंदिर, प्रार्थना, कीर्तन | *शब्द* जितना उपर आता है मन इतना एकाग्र होता है। *शब्द प्रबल* आएगा तो मन में कीर्तन होता है। कीर्तन में मन साथ जुड़ता है तो भाव आता है।
🔻🖋️ *मनोहर लाल भटेवरा, खाचरोद*🔻
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