जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने आदिनाथ भगवान के वन्दना स्वरूप भक्तामर जी का विवेचन करते हुए कहा कि जीवन मे विनय गुण की महानता है विनयशील व्यक्ति के जीवन मे असम्भव कार्य भी सम्भव होने लगते है! विनय जीवन का वह सुरक्षा कवच है जो हमें हर क्षेत्र मे सुरक्षा प्रदान करता है! विनय मे सामने वाला भी झुकने को मानने को तैयार हो जाता है! वर्तमान समय मे घर परिवार समाज व देश मे सब से बड़ी समस्या ही अहंकार की है इसी के चलते चारों और अशांति व अराजकता का वातावरण बढ़ता जा रहा है! ज्ञान के क्षेत्र मे भी जब तक छात्र शिष्य अध्यापक गुरु जनों के सामने विनयी नहीं बनता तब तक ज्ञान हासिल नहीं कर पाता, पुत्र माता पिता के सम्मुख नहीं झुकता तो माँ बाप का प्रेम प्यार व्यापार भी पूर्णतः नहीं प्राप्त कर सकता!
किसी भी क्षेत्र मे देखलें बिना अहंकार त्यागे कार्य मे सफलता हासिल नहीं हो पाती! कुंए मे से भी पानी भरकर बाल्टी तभी बाहर निकल पाती है जब तक कुंए मे जाकर बाल्टी झुकती नहीं! आंधी तूफान के समय जो बृक्ष झुक जाते है वे सुरक्षित रह जाते है जो लम्बे लम्बे बृक्ष तूफान से टकराते है अकड़ कर खड़े रहते है वो टूट कर बिखर जाते है! धर्म का सार ही विनय है!
विनय से ही धर्म की शुरुआत होती है, विनय ही सर्वत्र सुख शान्ति का प्रदाता है! सभा मे साहित्यकार श्री सुरेन्द्र मुनि जी द्वारा भक्तामर का स्वरूप वर्णन के साथ साथ साथ धर्म का विविध स्वरूप समझाया गया एवं बालकों को धर्म संस्कार की प्रेरणा प्रदान की गई! महामंत्री उमेश जैन ने स्वागत व सूचना प्रदान की।