श्री गुजराती जैन संघ गांधीनगर में चातुर्मास विराजित दक्षिण सूर्य ओजस्वी प्रवचनकार डॉ श्री वरुण मुनि जी म.सा. ने पर्व पर्यूषण के पांचवें दिन रविवार को धर्म सभा में उपस्थित श्रद्धालुओं को अन्तगड सूत्र के माध्यम से क्षमा के सागर एवं अपूर्व सहनशीलता के धनी महान साधक मोक्षगामी आत्मा अर्जुनमाली के प्रेरणादायी कथानक पर सारगर्भित प्रकाश डालते हुए कहा कि अर्जुनमाली ने छह महीने में कर्म बांधे और छह महीने में सब कर्मों को क्षय करके परम पद मुक्ति मोक्ष में पधार गए।
उन्होंने कहा कि प्रतिदिन छह पुरुष और एक स्त्री की हत्या जैसा जधन्यतम महापाप अपराध, हिंसा करने वाला ऐसा वह क्रूर, हिंसक पाप करने वाला अर्जुनमाली भी सुदर्शन श्रावक के प्रभाव से भगवान महावीर की शरण में जाकर दीक्षित हो जाता है और उसके जीवन का रुपान्तरण हो जाता है और वे अपने किये घोर पापों का प्रायश्चित करते हुए अपने जीवन में आने वाले सभी कष्ट, उपसर्गों को समता, समभाव से सहन करते हैं और तप, साधना, संयम, के बल पर सब कर्मों को नष्ट करके परम पद निर्वाण को प्राप्त कर लिया।
धन्य है अर्जुनमाली की अपूर्व सहनशीलता क्षमा और समता की सर्वोत्कृष्ट साधना और सहनशीलता। जिसके कारण वह आगम पृष्ठों पर हमेशा हमेशा के लिए अमर हो गए। यह तीर्थंकर परमात्मा भगवान महावीर का ही जिनशासन का प्रताप है कि इसकी शरण ग्रहण करने पर महापापी भी संसार सागर से तिर जाता है। मुनि श्री ने कहा कि भगवान महावीर का यह दिव्य जगत को अमर संदेश है कि घृणा पाप से करो, पापी से नहीं।
धर्म सभा में अनेक श्रद्धालुओं ने विभिन्न तपस्याओ के प्रताख्यान परम पूज्य उप प्रवर्तक श्री पंकज मुनि जी म सा के मुखारविंद से ग्रहण किए उप प्रवर्तक श्री जी ने सबके तपस्या की बहुत बहुत अनुमोदना करते हुए साधुवाद देते हुए मंगल पाठ प्रदान किया। प्रारंभ में युवा मनीषी मधुर वक्ता श्री रुपेश मुनि जी ने अंतगड सूत्र का सरस शैली में वाचन किया। संचालन राजेश मेहता ने किया। इस अवसर पर समाज के अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।