थानांग सूत्र के अनुसार गौतम स्वामी प्रभु महावीर से पूछते है की देवता धरती पर किन कारणों से आते है । प्रभु ने फरमाया की देवता तीर्थंकरों का जन्म कल्याणक मनाने के लिये उनकी देशना सुनने के लिये लिए धरती पर आते है। देवलोक में देव शय्या पर देवता का जन्म होता है, मात्र 48 मिनिट में देवता पूरा यौवन प्राप्त कर लेते है, देवता को कभी बुढापा नही आता है । देवता जन्म लेते ही अपने अवधि ज्ञान से अपना पूर्व भव देखते है, एक देवता की सेवा में 32 देवियाँ होती है, देवता के पास सम्पूर्ण सुख सुविधा होती है लेकिन वो दान शील तप और भावना नही भा सकते है, क्योंकि उनकी मोह आकांक्षा कर्म का उदय रहता है। आपने फरमाया की वर्षों पूर्व नीमचौक में विराजित ज्योतिषाचार्य उपाध्याय भगवन श्री कस्तूरचंद जी मासा की सेवा में भी कुबेर के अधीनस्थ देवता रहता था, जिस कारण गुरुदेव दिन दुखियों की भरपूर सहायता करवा देते थे, ऐसे अनगिनत उदाहरण गुरु देव के चमत्कार के है ।
शतावधानी पूज्याश्री गुरु कीर्ति जी मसा ने महावीर कथा को आगे बढाते हुए फरमाया की फूल को विकसित होने में समय लगता है, बीज को जमीन के अंदर गाड़ा जाता है, अंधेरा, आँधी, तूफान, गर्मी, बारिश ये सब सहन करने के बाद फूल खिलता है और जग को महकाता है, प्रभु महावीर की आत्मा ने भी मोक्ष में जाने के पूर्व अनगिनत उपसर्ग सहन किये, अनन्त काल तक प्रभु की आत्मा निगोद में रही, फिर एकेन्द्रिय जीव बनती है, मिट्टी में, वनस्पति में, पानी में, वायु, अग्नि में एकेन्द्रिय जीव के असंख्य जन्म लिए, फिर बेन्द्रीय, तेन्द्रीय, चोन्द्रीय में, पंचेन्द्रिय में असंख्यात भव निकाले, 84 लाख योनि में भव भृमण कर मनुष्य जन्म प्राप्त किया। और महाविदेह क्षेत्र में नयसार का भव प्राप्त किया। दूसरा भव प्रथम देवलोक में हुआ। महावीर की आत्मा देवलोक में रहते हुए भी वँहा के वैभव में नही रमी ।
महावीर का तीसरा भव ऐसा भव था जिसे महावीर ने कभी नही चाहा था । तीसरे आरे के अंतिम काल में प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ जो की सबसे ज्यादा पुण्यवान थे, कल्प वृक्ष देखने वाले, वट वृक्ष के नीचे दिक्षा, अशोक वृक्ष के नीचे केवल ज्ञान, इन्द्रो के राजा शकेन्द्र उनके दर्शन करने धरती पर आते थे, क्षीर सागर का पानी रत्न जड़ित कटोरे में लाते थे, प्रथम शादी करने वाले आदिनाथ, एक काल के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ, अरबों वर्षों से जिनके नाम से आखातीज मनाई जा रही है वैसे आदिनाथ। अंतिम समय में उनके साथ 10000 साधुओं ने संथारा ग्रहण किया, जिसमें उनके शिष्य, पुत्र, पौत्र सब शामिल से उनके से 108 आत्माए एक साथ मोक्ष में गई एंव शेष 9998 में से कोई 1 घण्टे में 2 घण्टे में 1 दिन में मोक्ष में गई।
आदिनाथ भगवान का पुत्र भरत चक्रवर्ती उन्हीं भरत के पुत्र के रूप में महावीर की आत्मा का तीसरा भव मरीच के रूप में जन्म हुआ। नौकर, चाकर, धन, वैभव, ऐश्वर्य सब कुछ मरीच को दिखता था लेकिन आदिनाथ नही दिखते थे, क्योंकि उसके जन्म के पहले ही आदिनाथ प्रभु ने संयम ग्रहण कर लिया था। मरीचि अपने पिता भरत को देखता है, काका बाहुबली को देखता है, दादी मरुदेवी को देखता है। मरुदेवी माता ऐसी सौभाग्यशाली माँ थी जिसने हजारों पीढियां देखी लेकिन सभी उन्हें माँ कहते थे, दादी परदादी नही कहते थे। 1000 वर्ष हो गए प्रभु को संयम ग्रहण किये हुए महलों को छोड़े हुए लेकिन मरुदेवी माता हमेशा भरत से पूछती है मेरा ऋषभ कँहा है, वो हमेशा दुखी रहती और ऋषभ ऋषभ करती रहती है, मरीचि सोचता है कौन है ऋषभ मुझे ऋषभ को देखना है। क्या मरीचि की मुलाकात ऋषभदेव से होगी, मरिच क्या गलती करेगा यह आगे सुनने पर पता चलेगा।