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ज्ञान मनुष्य को तृप्ति, संतोष, आनंद, शांति व निर्भयता का दान देता है : देवेंद्रसागरसूरि

ज्ञान मनुष्य को तृप्ति, संतोष, आनंद, शांति व निर्भयता का दान देता है : देवेंद्रसागरसूरि

श्री सुमति वल्लभ नोर्थटाउन जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ में आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिजी ने प्रवचन देते हुए कहा कि अज्ञान आपका घातक शत्रु है, जबकि ज्ञान हितैषी मित्र। अज्ञान संशय का निर्माण कर जीवन को कटु, कलंकित व संकीर्ण बनाता है। जीवन जीने की उमंग समाप्त हो जाती है, मन कर्म से विमुख होकर तनावग्रस्त हो सकता है।

दूसरी ओर ज्ञान जीवन के लिए आशा, उमंग, प्रेरणा, उत्साह व आनंद के इतने गवाक्ष खोल देता है कि जीवन का क्षण-क्षण अनमोल उपहार प्रतीत होता है। एक सृजनशील क्षण आपको प्रतिष्ठा के उत्तुंग शिखर पर प्रतिस्थापित कर सकता है, जबकि कुविचार की अवस्था में क्षण भर का का निर्णय आपको निकृष्टता की गर्त में धकेलकर जन्म-जन्मांतरों के लिए आपको लांछित व कलंकित करने के लिए पर्याप्त है। अज्ञान हमें निराशा और पतन की ओर ले जाता है, जबकि ज्ञान आत्मिक उन्नति का पर्याय बनकर जीवन समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नयन की आधारशिला भी बनाता है। जीवन में यत्र-तत्र-सर्वत्र आनंद व सृजन का सौरभ प्रवाहित होता रहता है।

उन्होंने आगे कहा कि अज्ञान के अंधकार में ज्ञान रूपी प्रकाश के अभाव में भविष्य रूपी भाग्य की राहें अदृष्ट हो जाती हैं और मनुष्य असहाय होकर अपने कर्म व चिंतन की दहलीज पर ही ठोकर खाने को विवश होता है। मंजिल व लक्ष्य पास होने पर भी वह उसे न पाने के लिए अभिशप्त होता है। फिर वह अपनी ही सोच व कर्म के चक्रव्यूह में फंसकर भय से प्रकंपित होता रहता है। ज्ञान मनुष्य को तृप्ति, संतोष, आनंद, शांति व निर्भयता का दान देता है, जबकि अज्ञान अतृप्ति, असंतोष, अशांति व भय का उपहार देता है।

प्रसिद्ध विचारक ए. होम का मत है कि अज्ञान भय की जननी है। वास्तव में सभी अपराध, विध्वंस, कुकृत्य और अनैतिक कार्य अज्ञान से प्रेरित होकर ही किए जाते हैं। चोर अज्ञानता में ही चोरी का अनैतिक कार्य करता है। वह उसे जीवन का चरम और परम व्यवसाय लगता है, किंतु ज्ञान व बोध हो जाने पर उसके आगोश में बिताए गए क्षणों के प्रति पश्चाताप का भाव उत्पन्न होता है। अज्ञान को अंधकार कहा है, जिसमें मनुष्य घुटने के लिए विवश होता है।

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