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जो जिनवाणी को धारण कर लेता है वह जीव पंचम काल मे भी पहले और जैसे सुख का अनुभव करता है: विजेता प्रभु महावीर स्वामी

जो जिनवाणी को धारण कर लेता है वह जीव पंचम काल मे भी पहले और जैसे सुख का अनुभव करता है: विजेता प्रभु महावीर स्वामी

अनन्त – अनन्त उपकारी राग द्वेष के विजेता प्रभु महावीर स्वामी के पावन कमलों मे कोटिस: नमन। जिनेश्वर भगवान भव्य जीवो को प्रतिबोधित करने के लिए जिनवाणी रुपी गंगा प्रवाहित की।

जिनेश्वर भगवान की वाणी लक्ष्य भव्य को सुखी करना। जो जिनवाणी को धारण कर लेता है वह जीव पंचम काल मे भी पहले और जैसे सुख का अनुभव करता है। धर्म कल्प वृक्ष से भी बढ़कर है इसलिए पांचवां आरा पहले आरे से भी श्रेष्ठ है। पांचवां आरे मे भोग भी है धर्म है जिससे वह दुख मे भी सुख प्राप्त कर लेता है।

सुख प्राप्त करने के लिए संसार है। उसमे से मुक्त प्राप्त करने की कला आनी चाहिए। यदि-कला आ गई तो मोक्ष रूपी सुख को प्राप्त कर लेगा। दुध मे मक्खन है, उसमे से मक्खन मे निकालने की कला आनी चाहिए । दूध में जावन डालना मंथन करना तभी जाकर मक्खन उपर आ जाएगा। मक्खन दूध मे से विधि का उपयोग करके निकाल सकते हैं। भगवान ने कहा को संसार मे सुख है। मंथन करके उस सुख को प्राप्त कर सकते है। पहले संसार मे सुख को प्राप्त करेगा वह हल्की हो जाएगी तो मोक्ष को प्राप्त करेगा। संसार के सब जीव सुख चाहते हे दुख कोई नही , सुख मे धर्म हो सकता है दुख मे नही ।
लेकिन जब तक सुखी रहता है। दूसरे सुख के सपने देखता है। वह सुख मिला कैसे उसके बारे मे चिंतन नहीं करता।

कोई समझाता है तो विश्वास नही करता। संसार के सुख को प्राप्त करके सिंगापुर आदि घूमने के बारे मे सोचता है। आज जो भोग भोग रहा है वह कब समाप्त हो जाएगे किसी को नहीं पता। प्राप्त भोगो को त्याग करगे तो तो पुण्य बढ़ेगा। लेकिन व्यक्ति उल्टा करता है, धर्म के स्थान मे भी पाप की बात करता है फिल्म जाता है तो बहुत प्रचार करता है धर्म की चर्चा नही करता। प्रवचन सुन के घर जाता है तो कोई चर्चा नहीं भूल जाता है। वह नही सोचता जब दुख आएगा तो कैसे धर्म करेगा।

रहने के लिए घर नही रहेगा खाने के लिए रोटी नही रहेगी। जिसका शरीर साथ दे तो तप आदि मे लगा दे। शरीर कर्म बन्धन के लिए नही तोडने के लिए मिला है। इस शरीर से लौकिक और अलौकिक दोनो सुख प्राप्त कर सकता धन नही मिला तो कोई बात नही धर्म जरूरी है।

धर्म स्थान में आकर बेठने से ही सब तरह की शांति होगी। प्रभु की वाणी सदाकाल सत्य है यदि सुखी होना है तो धर्म को अपनायें। श्रेणिक राजा की धारिणी नाम की रानी रात्रि मे सुख सैया पर सोई हुई थी। उसे शुभ स्वप्न आया । शुभ कर्म का उदय होता है तो सुख से नींद आती है। और अशुभ कर्म के उदय से सुख की नींद नही आती। नींद नही आती तो शरीर मे कई तरह की बीमारियां हो जाती है।

मूल देव और भिखारी दोनो को सुबह रात्रि के पिछले प्रहर मे शुभ स्वप्न देखा । चन्द्र हथेली मे आता हुआ देखा। दोनो कह रहे है एसा स्व्प्नन देखा स्वप्न का अर्थ बताया कि घी शक्कर काला रोट मिलेगा। वह यह अर्थ सत्य नही मानता। कहने का सार यह है कि जीव शाखत सुख की खोज करे । संसारी सुख को छोडे और शाखत सुख को प्राप्त करने के लिए प्राप्त भोग को छोड़कर त्याग की ओर बढे। प्रवचन में बाहर बजार से अनेक श्रावक श्राविकाएं उपस्थित रहे। संचालन अध्यक्ष अशोक कोठारी ने किया।

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