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जो अपना अतीत जानता है वही अपना भविष्य तय कर सकता है: प्रवीण ऋषि

आचार्य प्रवीण ऋषि जी

लालगंगा पटवा भवन में बह रही महावीर के अंतिम वचनों की अमृत गंगा

आज के लाभार्थी परिवार : गौतमचंदजी नीलेश बोथरा परिवार, प्रकाशचंद महेंद्र कुमार गोलछा परिवार एवं श्रीमती प्रेमलता प्रकाशचंद सुराना परिवार

Sagevaani.com /रायपुर। उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने कहा जो अपने अतीत को जनता है, वह अपने भविष्य का निर्णय कर सकता है। मृगापुत्र ने अपने अतीत को जाना, कि कैसे उसके अशुभ में से शुभ का जन्म होता था और शुभ में से अशुभ का। कैसे उसने पुण्य में जीते हुए नर्क के बीज बो दिए थे, और उसके शुभ में से नर्क का जन्म हो गया था। और कैसे उसने नर्क में रहते हुए शुभ के बीज बोये, जिसके कारण उसे संयम मिला। उसने शुभ-अशुभ का चक्र देखा था, और अपने अंतर मन में तय किया कि अब मेरे शुभ में से शुभ नहीं शुद्ध जन्मेगा। मेरे अशुभ में से न शुभ जन्मेगा न अशुभ जन्मेगा, बस सिद्ध जन्मेगा। और यही जीवन का सबसे गहरा रहस्य है। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी।

गुरुवार को उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना के 11वें दिवस लाभार्थी परिवार श्रीमती चन्द्रिबाई कांकरिया परिवार, श्रीमती प्रभावती देवी शिखरचंद जी चतुरमोहता परिवार एवं रेखा-रतनलाल कोठारी परिवार मुंबई ने धर्मसभा में पधारने वाले श्रावकों का तिलक लगाकर स्वागत किया। उपाध्याय प्रवर ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि हमारे जीवन में भी ऐस ही होना चाहिए कि चाहे सुख आये या दुःख, उन पलों में संयम ही जन्मे।

कोई भी परिस्थिति हो, हमें धर्म का ही शरण मिले। मृगपुत्र जो सुख में जी रहा था, देवों के समान जिसके जीवन चल रहा था, उसके खिलाफ कोई नहीं था, लेकिन जब उसने देखा कि यदि मैंने शुभ पलों में भगवत्ता के बीज नहीं बोये, तो यह शुभ कभी भी मेरा भीतर नर्क को जन्म दे सकता है। उसने तय किया कि मुझे इन पलों में सुख नहीं, अंदर के सिद्धत्व की खोज करनी है। उसने माता-पिता से कहा, माता-पिता ने साधु जीवन में दिखने वाली कठिनाइयों का जिक्र किया। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि साधु के जीवन में कठिनाइयां दिखती हैं, लेकिन होती नहीं हैं। वहीं गृहस्थ जीवन में कठिनाइयां होती हैं, लेकिन दिखती नहीं है। लोगों को लगता है कि साधु परेशान है, लेकिन साधु सभी परेशानियों से मुक्त रहता है।

जो दिखता है लेकिन होता नहीं है, जो होता है वह दिखता नहीं है

उपाध्याय प्रवर ने कहा कि भले ही हमें साधु परेशान दिखता होगा, लेकिन वह कभी परेशान नहीं रहता। एक दिखता है लेकिन होता नहीं है और एक होता है लेकिन दिखता नहीं है। गृहस्थ जीवन की कठिनाइयां दिखती नहीं है, और साधु जीवन की कठिनाइयां दिखती हैं। होने नहीं होने का अहसास तब होता है जब अंदर में अशांति होती है। दिल में अवांछित मांग उठती है, तब कठिनाइयां आती हैं। मृगापुत्र ने अपनी माता से एक बात कही कि माँ तुमने जो भी कहा उस व्यक्ति के लिए वह तथ्य है, सत्य नहीं। जिस तथ्य की आप बात कर रही हैं, यह उसके लिए सत्य होता है जिसके अंदर वासना का सागर उमड़ता है। जिन जिन कष्टों का जिक्र माँ ने किया, मृगापुत्र अपनी अनुभूति के आधार पर कहता है कि माँ तुम किन कष्टों की बात कर रही हो?

इनसे भयंकरतम कष्टों को मेरी चेतना झेल चुकी है। हम सभी की चेतना ने इन कष्टों को झेला है, और जब उसने अपनी माँ को उन कष्टों के बारे में बताय तो उन्हें भी अहसास हो गया कि जिसे मैं सुकुमार कह रही थी, उसका शरीर सुकुमार है, आत्मा तो इससे अधिक दुखों से संपन्न है। जिन छोटे छोटे दुखों के सामने हम घुटने टेक देते हैं, हमारी आत्मा इनसे भी भयंकर दुःखों से गुजारी है। दुखों को सहन करने का सामर्थ्य तन में नहीं हैं, लेकिन उन्हें समझने का सामर्थ्य चेतना में है। और चेतना का सामर्थ्य हर व्यक्ति में है। उसी शक्ति को जागृत करने वाला श्रुतदेव आराधना का यह अध्याय है।

मृगापुत्र ने अपनी माता से कहा कि नर्क की अग्नि झेलने वाले को हलवाई की भट्ठी भी ठंडी लगती है। नर्क में ऐसी ठण्ड रहती है कि पत्थर भी चूरा हो जाए। मैंने उस अग्नि और ठण्ड को झेला है। आप जिस बोझ की बात कर रही हैं, उससे भयंकर बोझ मेरे कन्धों पर लादकर मुझे लोहे की सड़क पर जोता गया, और कन्धों पर कील चुभोकर अनंत तक दौड़ाया गया। पानी ऐसा तीखा मनो जीभ काट जाए, ऐसे पानी से मैंने प्यास बुझाई है। उसकी बात सुनकर माँ ने जाना कि बेटा अपनी वेदना से बता रहा है। वह अपना अनुभव सुना रहा था। माँ ने कहा कि मैंने अब तक तेरे तन को देखा था, आज मैंने तेरी चेतना देख ली। माँ ने कहा कि अगर बीमार पड़ जायेगा तो इलाज कौन करेगा? उसने कहा कि सूरज उदय होता है अस्त होने के लिए, जो आता है, वह जाता भी है। बिमारी आएगी तो जायेगी भी। जो आता है उसे हम पकड़कर रख लेते हैं, उसे छोड़ दो, जाने दो। बीमारी शरीर में आती है, आत्मा में नहीं। उसकी बात सुनकर माँ ने कहा कि तुम जा सकते हो, और मृगापुत्र चल पड़ा संयम की राह पर।

रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने बताया कि रायपुर की धन्य धरा पर 13 नवंबर तक लालगंगा पटवा भवन में उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना होगी जिसमे भगवान महावीर के अंतिम वचनों का पाठ होगा। यह आराधना प्रातः 7.30 से 9.30 बजे तक चलेगी। उन्होंने सकल जैन समाज को इस आराधना में शामिल होने का आग्रह किया है। उन्होंने बताया कि 4 नवंबर के लाभार्थी परिवार हैं गौतमचंदजी नीलेश बोथरा परिवार, प्रकाशचंद महेंद्र कुमार गोलछा परिवार एवं श्रीमती प्रेमलता प्रकाशचंद सुराना परिवार सरदावाले । श्रीमद उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना के लाभार्थी बनने के लिए आप रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा से संपर्क कर सकते हैं।

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