जीवन का सार तत्व धर्म है : देवेंद्रसागरसूरि
श्री सुमतिवल्लभ नोर्थटाउन श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन संघ में बिराजित आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिजी ने धर्म प्रवचन के माध्यम से उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि जीवन का सार तत्व धर्म है। धर्म से ही जीवों की वास्तविक पहचान होती है। इसलिए धर्म का स्थान सर्वोपरि है और किसी भी सत्ता का स्थान उससे ऊपर नहीं है। हर हालत में धर्म की रक्षा करनी है। अगर किसी का धर्म चला गया तो उसका सब कुछ चला गया।
दूध से उसकी सफेदी हटा देने से उसे दूध नहीं कहेंगे। इसी प्रकार किसी भी सत्ता का धर्म नष्ट हो जाने से उसकी विश्वसनीयता समाप्त हो जाती है। जब कोई जीव या कोई सत्ता अपने धर्म से हट जाती है तो उसका सर्वनाश हो जाता है। इसलिए किसी भी हालत में धर्म को नष्ट नहीं करना है, धर्म को बचाना है। संक्षेप में कहें तो परोपकार करना और अपनी-अपनी जिम्मेदारियों को निभाना ही धर्म है। इसी तरह किसी व्यक्ति को उत्पीडि़त करना और अपने दायित्वों से मुंह फेर लेना ही अधर्म है। धर्म के नाश के पीछे भी कारण हैं। जब समाज में अन्याय का बोलबाला होता है तो उस समय अच्छे लोग मजबूरी में सिर झुकाकर जीने लगते हैं।
इस स्थिति में धर्म पर अधर्म हावी हो जाता है। उस वक्त अच्छे लोगों की हालत दयनीय हो जाती है और वह कुछ कर नहीं पाते।ऐसी स्थिति में यह आवश्यक हो जाता है कि धर्म के बताए निर्देशों के अनुसार मूल्यों और मर्यादाओं के आधार पर आचरण पर बल दिया जाए। जिस समाज में मूल्यों और मर्यादाओं का वर्चस्व होता है वहां अधर्म अपने पैर नहीं पसार पाता। आज हमारे समाज की यही सबसे बड़ी समस्या है कि मूल्यों का लगातार पतन होता जा रहा है। पूरे समाज का यह दायित्व है कि इस स्थिति में परिवर्तन लाया जाए ताकि एक सुशिक्षित-सुसंस्कृत समाज का लक्ष्य हासिल किया जा सके। इसके लिए सभी को अपने-अपने स्तर पर प्रयास करने के लिए आगे आना होगा।