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जाग्रत न हो तो वह भावों से मृत के समान है

जाग्रत न हो तो वह भावों से मृत के समान है

जैन भवन रायपुरम में विराजमान पुज्य जयतिलक जी म सा ने प्रवचन में बताया कि चातुर्मास के तीन विभाग कर दे तो प्रथम 40 दिन बचपन एवं 8 दिन पर्यूषण के जवानी के और पीछे के दिन बुढापा जैसे हो जाते है। भव्य जीवों में इन 8 दिनों में उल्लास हर्ष एवं पराक्रम फोडने का चिंतन शुरू हो जाता है।

जब अंतगढ़ दशा के 90 महान आत्माओं का वर्णन सुनकर यदि कोई जाग्रत न हो तो वह भावों से मृत के समान है। यह पर्व जागृति का पर्व है। इन 8 दिनों में प्रमाद नहीं करना चाहिए! इन पर्व दिनों में घर घर में धर्म की आराधना का ठाठ लगता है, जिससे देवता भी उपयोग लगाए तो वह भी प्रसन्न हो जाते होगे। छोटे छोटे बालक मे भी त्याग तप की जागृती आ जाते है। सबकी मानसिकता धर्ममय हो जाती है! कोई कोई छोटे बच्चे तो तेला, अठाई आदि तप करते हैं। यहाँ बाल्यावस्था, युवावस्था, वृद्धावस्था शरीर की अपेक्षा नहीं भावों की अपेक्षा से है।

भादवा वद, चौथ के दिन 49 दिन होते हैं उस दिन संवत्सरी होती है । महावीर ने भी 49 दिन के बाद 70 दिन एक वृद्ध के नीच आवास कर चातुर्मास पूर्ण किया। संवतसरी तो एक दिन की ही होती है किंतु एक दिन में पूरी सम्यक, धर्म, आराधना नही हो सकती है। अतः दिग्गज आचार्यो ने आठ दिन का पर्व रखा, दिगम्बर परम्परा में संवत्सरी से दस दिन तक दस लक्षण का पर्व मनाते हैं।

हर वर्ष एक ही आगम “अंतगढ” सुत्र का वांचन ही किया जाता है क्योकि इसमें जितने साधको का वर्णण है सभी मोक्ष गये है! आठ दिन में ही संपूर्ण वांचन यह एक आगम स्वाध्याय किया जा सकता है! मूर्तिपूजक परम्परा में कल्पसूत्र की मान्यता है! दिगम्बर परम्परा में आगम की मान्यता नहीं होती है दश लक्षण का पर्व मनाते हैं

सुधर्मा स्वामी चम्पानगरी गुणभद्र उद्यान में विराजे तब उनके अंतेवासी जंबूस्वामी ने पुच्छा की! भगवन आठवें अंग सुत्र में क्या वर्णण है।चंपानगरी की बनावट का प्रसंग! राजी श्रेणिक 1 करोड 77 लाख गाँवो का राजा था। उनके अनेक पुत्र थे। वह वृद्ध हो चुके थे किंतु राज लिप्सा छुटी नहीं । कोनिक के मन में राज लिप्सा जागी ! तो षडयंत्र रचा! सारे भाइयो से गुप्त मंत्रणा की और राज्य का लोभ दिया! किंतु हल और विहल्ल ने हामी नहीं भरी। जब तक, अभयकुमार राज संचालन करते तब तक किसी की हिम्मत नहीं थी किंतु अभयकुमार के दिक्षीत होने के बाद राज्य व्यवस्था गड़बड़ा गई। अभयकुमार धर्ममय नीतीमय राज संचालन करते थे। पुण्यवाणी क्षीण हो तो पिता पुत्र में वैर पूर्व भव का होता है माता पुत्रो में।

पर्यूषण पर्व के उपलक्ष्य में चंदनबाला महिला मण्डल, रायपुरम द्वारा जम्बुस्वामी के दीक्षा के भाव पर शानदार नाटक प्रस्तुत किया गया। संचालन मंत्री नरेन्द्र मरलेचा ने किया। यह जानकारी प्रचार प्रसार मंत्री ज्ञानचंद कोठारी ने दी।

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