श्रुत प्रभावक, डॉ. मुनिराज श्री वैभवरत्नविजयजी म.सा. आदि भगवंत द्वारा प्रवचन
~आँखों में अंजन जैसे आँखों का तेज़ बढ़ता है वैसे ही आप मां में ज्ञानरुपी अंजन से आत्मा का सामर्थ्य बढ़ता है।
~ सम्यकज्ञान वह अमूल्य हीरा है वह कभी भी कम या कमज़ोर हो ही नहीं सकता है।
~ जहाँ ज्ञान है वहाँ पाप, दोष, गलतियां हो ही नहीं सकती।
~ ज्ञानी भगवंत कहते हैं की हमें हर पल भय से, क्रोध से, लोभ से नहीं किन्तु ज्ञान से ही जीवन जीना चाहिए।
~प.पू प्रभु श्रीमद् विजय राजेन्द्रसुरीश्वरजी महाराज ने श्री अभिधानराजेन्द्र कोष में केवल शब्दों का समूह नहीं दिया किन्तु आत्म को पापो से मुक्त करने वाले रत्नोंका सामूह दिया है।
~ सम्यकज्ञान यानी सकारात्मक जीवन,सुख,शांतिऔर समाधि से भरपूर है।
~ जिस मानव को स्वयं की भावना और सर्वजीव के लिए मैत्रीभाव है वो मानव प्रबल पुण्यशाली है।
~ हमारे जीवन में गलतियां होना वो महत्वपूर्ण नहीं है हम गलतियों से हमारे जीवन में क्या परिवर्तन लाते हैं वो महत्वपूर्ण है ।
~ हमारे जीवन में यदि ज्ञानरूपी सूर्य प्रगत हो गया है तो पापो का प्रवेश होना असंभव है।