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जब व्यक्ति की अपेक्षा उपेक्षित होती है तो उसे क्रोध आता है: उपप्रवृत्तिनि संथारा प्रेरिका सत्य साधना जी

जब व्यक्ति की अपेक्षा उपेक्षित होती है तो उसे क्रोध आता है: उपप्रवृत्तिनि संथारा प्रेरिका सत्य साधना जी

हमारे भाईन्दर में विराजीत उपप्रवृत्तिनि संथारा प्रेरिका सत्य साधना जी गुरुणी मैया एवं 7 ठाणा आदि साता पूर्वक विराजमान है। वह रोज हमें प्रवचन के माध्यम से नित नयी वाणी सुनाते हैं। वह इस प्रकार हैं। बंधुओं जैसे कि क्रोध पर कैसे पाएं काबू जब व्यक्ति की अपेक्षा उपेक्षित होती है तो उसे क्रोध आता है अपेक्षा और क्रोध का गहरा रिश्ता है पता ही नहीं लगता कि थोड़ा सा उपेक्षित होते ही व्यक्ति कितना विकराल रूप ले लेता है। पहले हम संबंध बनाते हैं जब जब अपेक्षा उपेक्षित होती है तब तक व्यक्ति को बुरा लगता है फिर संबंधों में दरार पड़ने शुरू हो जाती हैं। लोगों की अपेक्षाएं अलग अलग तरह की होती है और यह जरूरी नहीं हर व्यक्तिकी अपेक्षा पूरी कर दी जाए।

आदमी चाहता है कि मेरे अनुसार मेरा परिवार जिए समाज जीऐ जिस ट्रस्ट मे वह ट्रस्टी है वहा भी मेरा ही दबदबा चले। क्या जरूरी नहीं समाज में हर इंसान को अपने ढंग से जीने का अधिकार मिले और व्यक्ति अपनी सोच के अनुसार निर्णय लेता है अच्छा होगा कि औरों के अपेक्षा पालने की बजाय अपने आपसे अपेक्षा पाले।

जय जिनेंद्र जय महावीर कांता सिसोदिया भाईंदर🙏🙏

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