श्री सिद्धाचल स्थूलभद्र धाम में उपधान तप आराधना में आज श्री स्थूलभद्र कृपा प्राप्त पू आ श्री चंद्रयश सूरीश्वरजी महाराजा प्रवतर्क प्रवर श्री कलापूर्ण विजयजी म सा ने प्रवचन सभा को सम्बोधित करते कहा जगत में चार प्रकार के मनोवृत्ति वाले मनुष्य होते है 1-उत्तमोत्तम- जो निष्कारण उपकार करते है।
प्रतिफल की इच्छा के बिना शत्रु और मित्र को समान गिनकर आपत्ति में पड़े व्यक्ति की सहायता करते है 2-उत्तम जो अपने उपकारी का उपकार करता है। उपकारी के उपकार को चुकाना अपना फर्ज मानता है 3-अधम अपने उपकारी के उपकार को भूल जाने वाला अधम होता है।
4-अधमाधम जो व्यक्ति अपने उपकारी पर भी अपकार करता है। उनको कष्ट देता है वह अधमाधम है वह मनुष्य होकर भी राक्षस तुल्य ही है ऐसे व्यक्ति का जीवन निरर्थक है यह चार प्रकार की मनोवृत्ति में हम किसके स्वामी है।
पूज्य श्री ने आगे कहा मानव जन्म से नहीं गुणो से महान बनता है गुणो से ही मनुष्य जगत में पूजनीय बनता है गुणहीन मनुष्य तो सींग और पूछ रहित पशु समान है। परोपकार से पुण्य बंध होता है और दुसरो को पीड़ा देने से पाप बंध परोपकारी व्यक्ति वास्तव में मेघ समान है मेघ समुद्र के खारे जल का शोषण कर सब को मीठा जल प्रदान करता है।
वैसे ही परोपकारी व्यक्ति स्वयं आपत्ति सहन करके भी अन्य को आपत्तिओ से मुक्त कराता है दूसरे के हित में ही मेरा हित है यह समज जब आएगी तब परोपकार का गुण आ ही जायेगा और समजो परोपकार में ही स्वोपकार है।