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चेतना की शरीर को पकड़ने की आकांक्षा छूटे वह तप है कायोत्सर्ग: साध्वी नूतन प्रभाश्री

चेतना की शरीर को पकड़ने की आकांक्षा छूटे वह तप है कायोत्सर्ग: साध्वी नूतन प्रभाश्री

जैन साध्वी ने बताया कि कायोत्सर्गर् से समाप्त होती है मन की चंचलता

Sagevaani.com @शिवपुरी। जीते जी एक तरह से मृत्यु को देखना कायोत्सर्ग है। मृत्यु में जो घटना घटित होती है वहीं ध्यान में भी घटित होती है। कायोत्सर्ग में मृत्यु के समान ही शरीर से चेतना की पकड़ छूटती है औैर चेतना तथा मन की शरीर को पकड़ने की आकांक्षा समाप्त होती है, उक्त उदगार प्रसिद्ध जैन साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने कमला भवन में आयोजित विशाल धर्मसभा में व्यक्त किए। भगवान महावीर द्वारा बताए गए 12 तपों की व्याख्या कर रही है आज उन्होंने 12 वें और अंतिम तप कायोत्सर्ग को बड़ा तप बताते हुए कहा कि इससे आप अपनी चेतना को जान सकते हैं, पहचान सकते हैं। साध्वी पूनम श्री जी ने अपने उदबोधन में कहा कि जब तक आप अपने जीवन में पाप रूपी डोरी को नहीं तोड़ोगे तब तक अपने लक्ष्य की ओर नहीं बढ़ सकते हैं। उन्होंने धर्मप्रेमियों को अपनी वाणी का सदुपयोग करने की सलाह दी और कहा कि कम बोलें, लेकिन हित मित और प्रिय बचन बोलें।

धर्मसभा में साध्वी वंदना श्री जी ने भजन का गायन कर माहौल को आध्यात्मिक रंग से भरा। साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने बताया कि कायोत्सर्ग का अर्थ अपनी काया का त्याग नहीं है बल्कि अपनी चेतना की शरीर पर जो पकड़ हैं उससे विमुक्ति है। उन्होंने बताया कि 24 घंटे में कुछ समय अवश्य निकालें जिसमें चेतना पर शरीर की पकड़ को हम हटा सकें। उन्होंने कहा कि सामायिक 48 मिनिट की होती है यानि इस अवधि तक हम कायोत्सर्ग का अभ्यास कर सकते हैं।

उन्होंने बताया कि हमने काया से हमने अपने मन को जोड़ लिया है इसलिए सामायिक, संवर, जप, तप जैसे धार्मिक कार्य हमसे नहीं हो पाते हैं। धर्म करते समय भी बार-बार शरीर पर ध्यान जाता है। जरा सा मच्छर भी हमें विचलित कर देता है, लेकिन कायोत्सर्ग करने से शरीर की पकड़ कमजोर हो जाती है। कायोत्सर्ग से इन्द्रियों की चंचलता खत्म होती है और मन की शांति प्राप्त होती है। उन्होंने गजशुकुमाल मूनि का उदाहरण देते हुए कहा कि जब वह शमशान में ध्यान साधना में लीन थे तो उनके दुश्मन ने अंगारों से भरा घड़ा उनके सिर पर रख दिया था, लेकिन वह ध्यान और कायोत्सर्ग में इतने लीन थे कि उन्हें शरीर की पीड़ा का अहसास भी नहीं हुआ और उन्होंने मोक्ष मार्ग का बरण किया।

चाय, गुटखा और तम्बाकू हमारी धर्म आराधना में बाधक

साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने बताया कि हम व्यस्नों में इतने लीन हो गए है कि चाहते हुए भी धर्म आराधना नहीं कर पाते। उन्होंने कहा कि गुरूणी मैया के पास कई लोग आते हैं और कहते हैं कि उन्हें सुबह उठकर सबसे पहले चाय चाहिए। चाय अगर मिल जाए तो वह तप कर लें। बहुत से लोग तम्बाकू और गुटखे की लत के कारण तप, जप और धार्मिक कार्य नहीं कर पाते हैं। उन्होंने कहा कि चाय अंग्रेज भारत में लाए और हम स्वतंत्र होने के बाद भी एक तरह से उनके गुलाम बने हुए हैं। उन्होंने कहा कि पहले धन पति ही चाय पीते थे, लेकिन आज चाय घर-घर में पहुंच गईर् है हमें इन लतों का गुलाम नहीं बनना चाहिए।

सवाई माधौपुर से पधारे श्रावकों का हुआ सम्मान

साध्वी रमणीक कुंवर जी की धर्मसभा में बड़ी संख्या में सवाई माधौपुर राजस्थान से श्रावक और श्राविका उनके दर्शन बंदन और प्रवचन सुनने के लिए पधारे। चार्तुमास कमेटी के अध्यक्ष राजेश कोचेटा और सचिव सुमत कोचेटा ने सवाई माधौपुर की जैन कॉन्फ्रेंस युवा शाखा बजरिया के अध्यक्ष अशोक कुमार जैन का स्वागत किया वहीं जैन कॉन्फ्रेंस महिला शाखा के अध्यक्ष श्रीमती सीमा जैन का स्वागत श्रीमती पुष्पा गूगलिया और श्रीमती प्रीति कोचेटा ने किया।

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