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गोपाष्टमी — करुणा, सेवा और संरक्षण का दिव्य संदेश: भारत गौरव डॉ. वरुण मुनि जी महाराज

गोपाष्टमी — करुणा, सेवा और संरक्षण का दिव्य संदेश: भारत गौरव डॉ. वरुण मुनि जी महाराज

चातुर्मास के पावन अवसर पर श्री गुजराती जैन संघ, गांधीनगर, बैंगलुरु में विराजमान भारत गौरव डॉ. वरुण मुनि जी महाराज ने गोपाष्टमी के दिन अपनी अमृत वाणी से समाज को अद्भुत प्रेरणा प्रदान की।

महाराज श्री ने अपने गूढ़ और हृदयस्पर्शी प्रवचनों में कहा कि “गोपाष्टमी केवल गौपूजन का पर्व नहीं, यह संवेदना, सह-अस्तित्व और अहिंसा का उत्सव है। गौ माता हमारी संस्कृति, कृषि और आध्यात्मिक जीवन की आधारशिला हैं। उनका संरक्षण और सेवा हमारे जीवन का परम कर्तव्य होना चाहिए।”

उन्होंने कहा कि आज का मानव भौतिक सुखों की खोज में इतना व्यस्त है कि करुणा और सेवा के सच्चे अर्थ को भूलता जा रहा है। गोपाष्टमी हमें यह स्मरण कराती है कि जब तक हम प्रत्येक प्राणी में आत्मा का सम्मान नहीं करेंगे, तब तक सच्चे धर्म की स्थापना संभव नहीं।“गौ माता केवल एक पशु नहीं, बल्कि समस्त सृष्टि की पालनहार शक्ति हैं। उनका दूध, उनका स्नेह और उनका योगदान मानवता के अस्तित्व से गहराई से जुड़ा है।

गौ की सेवा करना, वास्तव में अपने जीवन को पवित्र करना है,” मुनिश्री ने यह भी कहा कि वर्तमान समय में जहाँ पर्यावरण असंतुलन और हिंसा का विस्तार हो रहा है, वहाँ गौ संरक्षण केवल धार्मिक कर्तव्य नहीं बल्कि सामाजिक और पारिस्थितिक आवश्यकता है। उन्होंने आह्वान किया कि हर व्यक्ति प्रतिदिन कुछ समय गौ सेवा के लिए निकाले, जल-चारा अर्पित करे, और अपने बच्चों में भी पशु-प्रेम और संवेदना का संस्कार जगाए। पूज्य गुरुदेव ने फरमाया कि हमारी जैन परंपरा में 32 आगम प्रमुख रूप से माने गए हैं। इन आगमों में भगवान महावीर स्वामी की अमृतवाणी का संकलन है।

इन 32 आगमों में से 31 आगम साधु–साध्वियों की साधना, संयम और तपश्चर्या पर आधारित हैं, परंतु एक ऐसा भी आगम शास्त्र है जिसमें भगवान महावीर के 10 उपासक श्रावकों का वर्णन किया गया है। इस ग्रंथ का नाम है — “उपासक दशांग सूत्र”। जब हम इस पवित्र आगम का अध्ययन करते हैं, तो इसमें वर्णित प्रसंगों से ज्ञात होता है कि भगवान महावीर स्वामी के उपासक श्रावक अत्यंत श्रद्धालु, समर्पित और सेवा-भाव से पूर्ण थे।

कहा गया है कि- अनेक श्रावकों के पास 8-8 और 10-10 गोकुल थे। ध्यान देने योग्य है कि 1 गोकुल में लगभग 10,000 गौएँ होती हैं — अर्थात् एक-एक श्रावक 1,00,000 से अधिक गोवंश का पालन-पोषण करता था।

परंतु आज के युग में स्थिति भिन्न है — जहाँ कभी एक श्रावक लाखों गौओं का पालन करता था, वहीं आज एक गौ माता को घर में रखना भी लोगों के लिए कठिन प्रतीत होता जा रहा है। बहुत से घरों में आज भी कुत्ते पालने की परंपरा तो देखी जाती है, परंतु गौ पालन और गौ सेवा का भाव कम होता जा रहा है।

पूज्य गुरुदेव ने प्रेरणा दी कि —“हर व्यक्ति को अपने सामर्थ्य अनुसार गौ सेवा में सहभागिता अवश्य करनी चाहिए।”

यदि कोई व्यक्ति अधिक संसाधन न रखता हो, तो भी सेवा, अन्नदान या संरक्षण के रूप में योगदान अवश्य दे।क्योंकि गौ सेवा की महिमा असीम है — यह न केवल पुण्यदायक है, बल्कि पूर्व जन्मों के पाप, श्राप और संताप को भी नष्ट करने वाली मानी गई है।

 गौमाता की सेवा से मन में शांति, हृदय में करुणा और जीवन में सुकून प्राप्त होता है।उन्होंने कहा — “जहाँ करुणा है, वहीं धर्म है। जहाँ सेवा है, वहीं सच्ची साधना है। और जहाँ संरक्षण है, वहीं परमात्मा का वास है।”गोपाष्टमी का यह पर्व केवल बाहरी पूजा तक सीमित न रह जाए, बल्कि यह हमारे जीवन का आचरण बन जाए — यही सच्ची भक्ति है।

प्रवचन के पूर्व कार्यक्रम का शुभारंभ युवा मनीषी श्री रूपेश मुनि जी के मधुर भजनों से हुआ, जिनकी स्वर लहरियों ने वातावरण को भक्ति रस से भर दिया। तत्पश्चात उपप्रवर्तक श्री पंकज मुनि जी महाराज ने मंगल पाठ का वाचन कर सभी को शुभाशीष प्रदान किया।

 अंत में मुनि श्री ने सभी को प्रेरित किया कि वे ‘जीवों में जीव दर्शन’ की भावना से जीवन जीएं और हर प्राणी के प्रति दया भाव विकसित करें।

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