श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन संघ कम्मनहल्ली में कर्नाटक तप चंद्रिका प.पू. आगमश्रीजी म.सा. ने बताया अत्यंत जाज्वल्यमान भयंकर अग्नि शरीर में प्रगट होती है। यह शरीर में रहकर आत्मा के नंदनवन गुणों को जला देती है। सक्रिय क्रोध बाहर से गर्म होता और अंदर से ठंडा रहता है जैसे कपबशी। निष्क्रिय क्रोध बाहर से ठंडा होता है और अंदर से गर्म होता है जैसे केलावड़ा के समान। कभी भी क्रोध नहीं होना चाहिए, नहीं तो हमारा जीवन बर्बाद होता है।
प.पू. धैर्याश्रीजी म.सा. ने बताया ईर्ष्या मत करो, क्रोध और मान को जीतो, तो ही हमारा कल्याण होगा। आये हो तो कुछ ना कुछ झोली भर लो, खाली नहीं जाना है। अध्यक्ष विजयराज चुत्तर ने स्वागत किया। मंत्री हस्तीमल बाफना ने संचालन किया।