श्री गुजराती जैन संघ, गांधीनगर, बेंगलुरू में चातुर्मासार्थ विराजित दक्षिण सूर्य ओजस्वी प्रवचनकार प. पू. डॉ. श्री वरुणमुनिजी म. सा. ने अपने मंगलमय उद्बोधन में फरमाया कि जीवन में भक्ति के साथ श्रद्धा का भी होना आवश्यक है । बिना श्रद्धा के की गई भक्ति शून्य हो जाती है। श्रद्धा के लिए समर्पण की आवश्यकता है और समर्पण के लिए लगन की । लगन चाहे पैसा कमाने की हो, प्यार करने की हो, धन कमाने की हो या धर्म करने की हो । जिस कार्य के प्रति हमारा समर्पण होता है, लगन होती है, वहां हम बहाने नहीं बनाते ।
मित्रता में भी समर्पण की आवश्यकता होती है। कई मित्र धन देखकर बनते हैं तो कई सत्ता के लालच में । कुछ मित्र व्यक्ति की खुशी में शरीक होते हैं, कुछ मित्र जवानी के होते हैं, किंतु सच्चा मित्र तो कल्याण मित्र ही होता है । कल्याण मित्र हमें धर्म के मार्ग पर आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है । वह पति के रूप में हो सकता है, पत्नी के रूप में हो सकता है, गुरु के रूप में हो सकता है या दोस्त के रूप में हो सकता है या रिश्तेदार के रूप में हो सकता है। कल्याण मित्र, हमें अशुभ से शुभ की ओर ले जाता है, कुमार्ग से सन्मार्ग की ओर ले जाता है, दु:ख या आवश्यकता के समय वह हमेशा हमारे साथ खड़ा रहता है। माता भी पांच प्रकार की होती हैं – पहली माता- जिसने हमें जन्म दिया, दूसरी मां- सासू मां, तीसरी मां- मित्र की मां, चौथी मां- राजमाता और पांचवी मां- गुरु माता। पूज्य प्रवर्तक गुरुदेव श्री अमरमुनि जी म. सा. फरमाते थे कि मौत और भगवान को याद रखने वाले कभी पाप नहीं करते ।
पूज्य श्री वरुणमुनि जी म.सा. ने तेतली पुत्र के कथानक के माध्यम से बताया कि एक समय वह अपनी पत्नी के मोह में अत्यधिक आसक्त था, किंतु समय गुजरने के साथ अंतराय कर्म का ऐसा भयंकर उदय हुआ कि उसका पत्नी मोह पूरी तरह से भंग हो गया और उसके मन में पत्नी के प्रति घृणा का भाव पैदा हो गया । सच तो यह है कि विवाहित स्त्री की इज्जत तभी तक है, जब तक पति के मन में उसके प्रति सम्मान का भाव है। पति के बिना पत्नी का जीवन सूना- सूना हो जाता है । कर्मों की माया निराली है । व्यक्ति जैसा कर्म करता है, वैसा ही उसे फल भोगना पड़ता है। अतः कर्म के मर्म को समझकर हम सत्कर्म की ओर आगे बढ़ें, तभी हमारे जीवन का कल्याण संभव है।
आज की प्रवचन सभा में बैंगलोर के उपनगरों एवं गांधीनगर के आसपास के क्षेत्रों के अनेक श्रद्धालु भक्तजन उपस्थित थे ।
मधुर गायक श्री रुपेश मुनि जी म. सा. ने अत्यंत मधुर भजन के साथ सभी श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया। उप प्रवर्तक परम पूज्यश्री पंकजमुनि जी म. सा. ने मंगल पाठ प्रदान किया ।