वीरपत्ता की पावन भूमि आमेट के जैन स्थानक मे पर्व पर्युषण के पांचवें दिन साध्वी चन्दन बाला ने कल्पसूत्र के माध्यम से कहा कि कल्पसूत्र में भगवान महावीर के विस्तृत जीवन का वर्णन हैl यह कल्पसूत्र साक्षात् कल्पवृक्ष समान हैl इस सूत्र में अनानुपूर्वी से कथन होने से सर्वप्रथम महावीर प्रभु का चरित्र बीज समान हैंl पाशर्वनाथ का चरित्र अंकुर समान है, नेमिनाथ का चरित्र स्कंध समान है, ऋषभदेव का चरित्र डाली के समान हैं, स्थविरावली पुष्प के समान है, सामाचारी का ज्ञान सुगंध समान है और मोक्ष की प्राप्ति फल समान हैl पर्युषण महापर्व के पांचवे दिन में कल्पसूत्र के दो व्याख्यानों का स्वाध्याय (वाचन) होता है । महावीर प्रभु की आत्मा ने मरीचि और त्रिपृष्ट वासुदेव के भव में भयंकर पाप किए थे, जिसके फलस्वरुप उन्हें दो बार नरक में भी जाना पड़ा था ।
भगवान महावीर ने 13 महीनों तक देवदुष्य वस्त्र को धारण किया, उसके बाद प्रभु महावीर निर्वस्त्र हो गए, उन्होंने वह वस्त्र सोम शर्मा नामक गरीब ब्राह्मण को दे दिया । 12 वर्षों तक कठोर तपस्या करने के पश्चात भगवान महावीर को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई, भगवान महावीर ने 12 वर्षों में न जाने कितने ही कष्टों को सहा, कभी वे कारागार में गए, कभी उन्हें फांसी की सजा दी गई, कभी उन्हें संगम देव ने कष्ट दिए,कभी उन्हें आदिवासियों द्वारा प्रताड़ित किया गया, कभी उन्होंने भूख को सहन किया, कभी प्यासे को तो उन्होंने समभाव से ग्रीष्म व शीत ऋतु भी सहन की , एक राजकुमार होते हुए भी उन्होंने हंसकर कष्टों को सहन किया। इन 12 वर्षों की साधना काल के पश्चात वह वर्धमान से महावीर बन गए, वह केवल ज्ञान को पा गए और उसके पश्चात उन्होंने साधु, सध्वी, श्रावक, श्राविका नामक चार तीर्थों की स्थापना की और तीर्थंकर कहलाए, महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर बने ।
वैशाख शुक्ल दशमी के दिन ऋजुबालिका नदी के तट पर गौदुहा आसन करते हुए, उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हुई और वह अरिहंत बन गए।भगवान महावीर के केवल ज्ञान प्राप्त करते हि उनके साधना काल की अवधि पूरी हो गई, वह परम तत्व केवल ज्ञान को पा गए।
*साध्वी विनीत रूप प्रज्ञा ने अन्तगड़ सूत्र के द्वारा बताया कि*
अंतगडदसा सूत्र पढ़ने से आत्मा का पौषण होता है : इसको पढ़ना मां के दूध के समान है, जिससे आत्मा को ताकत मिलती है। इसे पढ़ने से महापुरुषों के जीवन का परिचय होता है। हम पहले कहां थे कहा चले गए क्या हो गया यह भी पता चलता है।
भगवान की वाणी अंतगडदसा सूत्र की मूल वाचना व उसका हिंदी अनुवाद कर समझया कि गजसुकुमाल गर्भ में आ गए। आज धर्म सभा में इसका वर्णन चलेगा। महापुरुष तो बहुत हैं, परंतु गजसुकुमाल का जीवन पढ़ने व सुनने से रोंगटे खड़े हो जाते हैं। जैसे देश को आजादी दिलवाने के लिए शहादत तो बहुत देश भक्तों ने दी लेकिन नाम केवल शहीद भगत सिंह का आता है। उनका जीवन कठोर है केवल लक्ष्य पर ही उनकी दृष्टि है। गंजसुकुमल की मां को उसके जन्म का बेसबरी से इंतजार है। इसमें अच्छे संस्कार हैं। मां खाने व पीने का पूरा ध्यान रखती है। ताकि बच्चे में भी धर्म के संस्कार पैदा हो जाए। बच्चा वाषणा व तृष्णा का शिकार न बने। सवा नौ माह पूरे होने पर देवकी रानी ने सलोने रूपवान बच्चे को जन्म दिया। बच्चे का शरीर हाथी के तालुए के समान कोमल था। बच्चे का नाम गंजसुुकुमाल रखा। वह पढ़ने लगा ओर यौवन अवस्था में पहुंच गया। श्री कृष्ण को उसकी शादी का रूपाल आया। सोमिल नामक ब्राम्हण की लड़की सोम श्री को देख श्री कृष्ण ने अपने छोटे भाई गजसुकुमाल की शादी इस रूपवान कन्या सोम श्री से करने के लिए उसके पिता को दरबार में बुलाया। दरबार में शादी तय हो गई। ऊधर द्वारिका नगरी में भगवान अरिष्टनेमि पधारे हुए थे। भगवान गजसुकुमाल अपने छोटे भाई को साथ लेकर दर्शन के लिए चले गए। गजसुकुमाल ने उनके चरणों में दीक्षा लेने के लिए कहा। इस मौके श्री कृष्ण ने कहा की मै तुम्हारा भरी सभा में राज्यभिषेक कर तुम्हें राजा बनाना चाहता हूं। दीक्षा का ख्याल अपने मन से निकालो। दरबार सजाया गया राज्यभिेषक किया गया। गजसुकुमाल ने कहा कि मेरी दीक्षा की तैयारी करो। भगवान अरिष्टनेमि के चरणों में दीक्षा अंगीकार कर महाकाल शमशान में एक रात्रि की महिमाप्रतिमा धारन की इच्छा प्रगटाई। ऊधर सेमिल ब्राम्हण ने लड़की की शादी न करने का बदला लेने की भावना से गजसुकेमाल के सिर पर बलती हुई चिता से लकड़ी उठा कर रख दी। गजसुकुमाल यह सब सहन करते रहे। अंत में सिद्ध बुध मुक्त हो गए। जब श्री कृष्ण ने भगवान अरिष्टनेमि से अपने भाई के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि गजसुकुमाल ने अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लिया है। श्री कृष्ण को बहुत गुस्सा आया भगवान ने उन्हें समझाया। श्री कृष्ण जब वापस द्वारिका नगरी आ रहे थे तो रास्ते में सोमिल ब्राम्हण ने श्री कृष्ण को देख प्राण त्याग दिए। सोमिल ब्राम्हण ने पिछले जन्म का बदला लिया था।
मिडिया प्रभारी प्रकाश चंद्र बड़ोला ने बताया कि शुक्रवार को सामूहिक एकासन के व्रत शांतिलाल सिरोया परिवार की ओर से रखा गया है । महावीर भवन मे पर्युषण पर्व पर 8 दिनो तक 24 घंटे का नवकार महामंत्र का अखंड जाप चल रहा है, जिसमे दिन मे श्रावक एवं रात्रि मे श्राविकाएँ भाग ले रही है ।
इस धर्म सभा मे बेंगलुरु से लादूलाल गन्ना अपने से परिवार के साथ पधारे । इस धर्म सभा मे भीम, ताल, गोगुन्दा, राजाजी का करेड़ा, आसींद, देवगढ़ आदि कई जगहो के श्रावक उपस्थित थे ।
इस धर्म सभा का संचालन नरेंद्र बड़ोला ने किया ।