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ज्ञान वाणी

कर्म से ही मनुष्य सुख-दुख पाता है ।

आज पर्वाधिराज पर्युषण का पंचम दिवस बडे उत्साह ओर उमंग से मनाया गया । गुरुभगवंतों का आज का विषय था “कर्म का सिद्धांत” ओर “महामंत्र नवकार का महात्म्य” ।

पूज्यनीय महासति प्रियंकाश्रीजी महाराज साहब ने कर्म बंध की विवेचना की ।

संसार में सुख-दुख, हानी लाभ, जीवन मरण, दरिद्रता संपन्नता, रुग्णता स्वास्थ्य, बुद्धिमत्ता अबुद्धिमत्ता, आदि आदि वैभिन्य स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं । इन सभी प्रकार के वैषम्य का मूल कारण कर्म ही है । कर्म से ही मनुष्य सुख-दुख पाता है । इसलिए कहा गया है कि अपने द्वारा किये गऐ कर्म का भुगतान स्वयं को ही जन्म जन्मांतर तक करना पडता है । जैन सिद्धांत के अनुसार बांधे गए कर्मो की निर्जरा तप-त्याग और आचरण की शुद्धता के द्वारा, कुछ हद तक उनसे मुक्ति भी पा सकते हैं ।

महामंत्र नवकार का महात्म्य बताते हुए पूज्यनीय महासती सरिताश्रीजी महाराज साहब ने फरमाया कि जैन धर्म का अनादि ओर अति पवित्र मंत्र है णमोकार महामंत्र । इसमें किसी व्यक्ति विशेष का नहीं अपितु संपूर्ण रूप से विकसित और विकासमान विशुद्ध आत्मस्वरूप के दर्शन स्मरण चिंतन ध्यान का अनुभव होता है । इसलिए यह अलौकिक ओर अक्षयस्वरूपी मंत्र है । यह मंत्र लौकिक एवं लोकोत्तर सर्वसिद्धि कारक माना जाता है । यह मंत्र दरिद्रता भय एवं विपत्ती दूर करने में सबसे बडा आत्मसहायक / सक्षम है । आत्मशुद्धि और मुक्ति मार्ग प्रशस्त करता है । इस मंत्र का प्रतिदिन जाप एवं किसी काम की शुरुआत के पूर्व इस मंत्र का ध्यान करने से सफलता की राह आसान हो जाती है ।

सादर जय जिनेन्द्र

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