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उपकार को कभी भूलना नहीं और अपकार को कभी दोहराना नहीं- आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीजी

उपकार को कभी भूलना नहीं और अपकार को कभी दोहराना नहीं- आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीजी

किलपाॅक जैन संघ में विराजित योगनिष्ठ आचार्य केशरसूरी समुदाय के वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीश्वरजी म.सा. ने प्रवचन में कहा कि पयन्ना आगमों में वैराग्य के प्रबल भावों के बारे में बताया है। अमुक चुनंदे ही श्रावक, आराधक आदि आत्माओं को भी गुरु की आज्ञा से ही पयन्ना आगमों को पढ़ने का अधिकार दिया गया है। इन आगमों में मनुष्य सौ साल में किस तरह दस अवस्थाओं से गुजरता है, उसका भी वर्णन है। गर्भावस्था और जन्म के बाद आहारचर्या का वर्णन भी इनमें आता है। उन्होंने कहा शरीर का सबसे सेंसिटिव भाग गला है। शरीर में 99 लाख रोमकूप और साढ़े तीन करोड़ रोमराजी व्याप्त है। मानव बारह साल तक मां की कोख में रह सकता है लेकिन नौ महीने रहने से स्वस्थ रहता है।

परमात्मा के अतिशय के बारे में उन्होंने बताया कि परमात्मा जहां विचरण करते हैं, उसका प्रभाव होता है कि वह क्षेत्र शुद्ध बन जाता है। रास्ते के कांटे भी उल्टे हो जाते हैं। कोई अकाल मृत्यु नहीं होती। कोई युद्ध, उपद्रव आदि नहीं होते। पापी के पापों को दूर कर मोक्षमार्ग पर लाने के लिए परमात्मा निमित्त बनते हैं। परमात्मा के अतिशय से सचित वस्तु के ऊपर चलने से भी विराधना नहीं होती। उन्होंने कहा उपकार को कभी भूलना नहीं और अपकार को कभी दोहराना नहीं। यदि आप कोई गाथा या सूत्र भूल गए हैं तो ज्ञानावरणीय कर्म उदय में आते हैं और उपकार भूलने से मोहनीय कर्म उदय में माने जाते हैं।

मुनिश्री धन्यप्रभ विजयजी म.सा. ने कहा कि अरिहंत परमात्मा के हमारे ऊपर बहुत सारे उपकार है। क्रोध, मान, माया, लोभ आदि कषायों से हमारी आत्मा दुर्गति में जाती है और वे अनंत संसार भ्रमण को बढ़ाते हैं। ये कषाय हमारी आत्मा के शत्रु है। पांच इंद्रियों का दुरुपयोग करने से हमारा भव- भव बिगड़ता है। आंख का दुरुपयोग करेंगे तो भव- भव हमें वह नहीं मिलेगी। इसलिए आंख आदि इंद्रियों का सदुपयोग करना चाहिए।

कान का सदुपयोग जिनवाणी आदि सुनकर करना चाहिए। उन्होंने कहा आठों कर्मों में मोहनीय कर्म सबसे ज्यादा खतरनाक है, हमें उसे जीतना है। नरक में असंख्य जीव है, इसका ज्ञान भी परमात्मा ने हमको दिया है। परमात्मा ने साढ़े बारह वर्ष की कठोर साधना कर केवलज्ञान प्राप्त किया और ये सब हमको बताया। परमात्मा हमारे प्रथम उपकारी है। उन्होंने कषाय-विषयों के ज्ञान एवं दान, तप, शील, भाव के माध्यम से हमें मोक्षमार्ग का रास्ता बताया। उन्होंने कर्म सिद्धांत का भी सूक्ष्मज्ञान दिया है। हमारे जीवन में सुख-दुख कर्मों के कारण आते हैं, उसकी व्याख्या उन्होंने दी। भगवान खुद भी तिर गए और हमें भी तारने का कार्य कर रहे हैं। जिनशासन मानता है हर आत्मा परमात्मा बन सकती है। हमें यह सुंदर मानव भव मिला है, सुंदर काया मिली है, इसके लिए भगवान का उपकार मानना चाहिए।

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