नवपद ओली तप आराधना 5 अक्टूबर से
जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में जय वाटिका मरलेचा गार्डन में श्रावक के 12 व्रतों के शिविर के दौरान नवें व्रत का विवेचन करते हुए जयधुरंधर मुनि ने कहा विषमताओं को मिटाकर समत्व की साधना ही सामायिक है।
आज तक जितने भी प्राणी मोक्ष गए, वर्तमान में जा रहे हैं और भविष्य में जाने वाले हैं वे सब सामायिक के प्रभाव से ही संभव हुए हैं। सामायिक से 18 पापों का नाश तथा आठों ही कर्मों का क्षय किया जा सकता है।
शुद्ध मन से की जाने वाली सामायिक साधक को भवसागर से पार लगा देती है और उसे अमित शांति की प्राप्ति होती है। द्रव्य, क्षेत्र ,काल और भाव की शुद्धि सहित तथा मन ,वचन और काया के दोषों को टालते हुए सामायिक की आराधना की जानी चाहिए । यह व्रत आत्मा को शिक्षित करता है। सामायिक की साधना से आत्मा दुर्गतियों में जाने से बच जाती है।
श्रावक का दसवां व्रत आश्रव के द्वार को संकुचित करता है। जिसके द्वारा 14 नियम में सभी प्रकार की उपभोग – परीभोग की वस्तुओं एवं दिशाओं का परिमाण प्रतिदिन के उपयोग की अपेक्षा से किया जाना चाहिए । साथ ही धर्म आराधना एवं तपस्या आदि का भी नियम दिन विशेष के लिए लिया जाना चाहिए।
ग्यारहवें व्रत में एक श्रावक 24 घंटों के लिए प्रतिपूर्ण पौषध के द्वारा चारों ही प्रकार के आहार का त्याग करते हुए आत्मा का पोषण करता है। पौषध आत्मा में वास करने का अनुपम अवसर होता है। जिससे साधु जीवन का एक अभ्यास करने का मौका श्रावक को मिल जाता है।
बारहवें व्रत का विवेचन करते हुए मुनि ने कहा सुपात्र दान श्रेष्ठ दान है जहां श्रावक स्वयं के लिए उपयोग में ली जा रही वस्तुओं का एक अंश निग्रंथ मुनिराजों को अथवा साधार्मिक बंधुओं को दान के रूप में देता है ।जिससे प्रबल पुण्यवानी अर्जित होती है। सुपात्र दान सुखपूर्वक मोक्ष मंजिल को प्राप्त करने का एक सरल उपाय है जिसे एक श्रावक को उत्कृष्ट भाव से देना चाहिए।
मुनि वृंद के सानिध्य में 5 अक्टूबर से 13 अक्टूबर तक नवपद आयंबिल ओली तप आराधना आयोजित होगी । जिसके अंतर्गत श्रीपल चारित्र का वांचन एवं सामूहिक साधना करवाई जाएगी।