कोडमबाक्कम् वड़पलनी श्री जैन संघ के प्रांगण में आज तारीख 18 अगस्त गुरुवार को प.पू. सुधा कवर जी मसा ने महाप्रभू महावीर की मंगलमयी वाणी का उद्बोधन करते हुए फरमाया:-श्रावक के छः आवश्यक मे से चौथे सूत्र “प्रतिक्रमण” को इस भव में और परभव में भी साथ आने वाला “अमूल्य खजाना” है! निर्लोंभता आत्मा का स्वभाव है! हम जो प्रतिक्रमण करते हैं वह द्रव्य प्रतिक्रमण के साथ-साथ भाव प्रतिक्रमण भी होना चाहिए! प्रतिक्रमण भूतकाल में किए गए दोषों का, वर्तमान में संवर करके आए हुए कर्मों पर रोक लगाने का, भविष्य में पुनः पाप ना हो, उन सब के प्रत्याख्यान है! राजा श्रेणिक बौद्ध धर्म को मानते थे और वे मांसाहारी थे! महारानी चेलना के अथक प्रयास से वे मिथ्यात्व का प्रतिक्रमण करके सम्यक्तव की तरफ बढ़े, और वे आने वाले 24 तीर्थंकरों में एक तीर्थंकर होंगे!
प.पू.सुयशा श्रीजी मसा ने फ़रमाया, हम चाहते हैं हमारी जिंदगी में सब कुछ बेस्ट हो! घर बनाते हैं तो बेस्ट फर्नीचर बेस्ट आर्किटेक्चर पर ध्यान देते हैं ताकि कीडे मकोड़ों से या सर्दी गर्मी बारिश से कोई नुकसान ना हो!
लेकिन जिंदगी बार-बार नही मिलती, सिर्फ एक बार ही मिलती है, इसलिए जिंदगी best quality होनी चाहिए! हमारी सोच (वृति) और हमारी करनी (प्रवृत्ति) में बहुत फर्क होता है! इसलिए उसका परिणाम जैसा हम सोचते वैसा नहीं होता! हमें सरल बनना है बेवकूफ नहीं! क्रोध मान माया लोभ में “माया” बड़ी खतरनाक होती है! इसका पता लगाना बड़ा मुश्किल काम है! हमें अच्छा बनने में नहीं बल्कि अच्छा दिखने में रूचि है इसलिए हम अपनी जिंदगी का सुधार नहीं कर पाते। हमें जिंदगी में परिवार और दोस्तों से मिल जुल कर रहना है! किसी से भी ईर्ष्या करके हम सुखी नहीं रह सकते। हमें दूसरों के खुशी में खुश रहना सीखना चाहिए वरना पूरी जिंदगी अंदर से परेशान होते ही रह जाएंगे!