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अहिंसा की साधना के लिए करें अभय का विकास : आचार्य महाश्रमण

अहिंसा की साधना  के लिए करें अभय का विकास : आचार्य महाश्रमण

तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता-शांतिदूत-अहिंसा यात्रा के प्रणेता-महातपस्वी, महाप्रज्ञ पट्टधर आचार्य श्री महाश्रमण जी ने अपने मंगल पाथेय में फरमाते हुए कहा कि अहिंसा की साधना के लिए अभय होना आवश्यक है।

अहिंसा और अभय का परस्पर संबंध होता है जहां भीरुता होती है वहां दुर्बलता रहती है और दुर्बल के लिए अहिंसा की साधना करना कठिन होता है।

अहिंसा की साधना के लिए अभय का विकास करना चाहिए। भय के प्रमुख कारणों में एक है प्रमाद | प्रमाद करने वाला व्यक्ति भयभीत होता है जो प्रमाद नहीं करता उसे भय नहीं सताता है।

अगर कोई व्यक्ति गलती करता है या व्यवस्था का अतिक्रमण करता है उसके मन में भय होता है कि अगर उसकी गलती पकड़ी गई तो क्या होगा ? अपराधी अपराध को छुपाता है और उसे पकड़े जाने का डर रहता है। गलत कार्य के पर्दाफाश हो जाने के डर से झूठ बोलना पड़ता है  और फिर झूठ को छुपाने के लिए झूठ पर झूठ बोलना पड़ता है। ऐसा कार्य ही नहीं करना चाहिए कि उसके बाद झूठ बोलना पड़े।

आचार्यवर ने आगे कहा कि  इमानदारी का रास्ता सीधा और बेईमानी का रास्ता टेढ़ा होता है। ईमानदारी के रास्ते पर चलने पर कठिनाई आती है परंतु उसकी मंजिल अच्छी होती है। बेईमानी के रास्ते की मंजिल बुरी होता होती है अतः बेईमानी का रास्ता छोड़कर ईमानदारी के रास्ते पर आगे बढ़ना चाहिए।

परिग्रह भी भयभीत करने का एक कारण बन सकता है। अपनी अर्जित की गई वस्तुओं की सुरक्षा के लिए भयभीत होना पड़ता है। व्यक्ति अगर मोह-माया से ऊपर उठ जाए तो अभय के द्वारा अहिंसा के मार्ग पर निर्बाध रूप से आगे बढ़ा जा सकता है। प्रवचन में मुमुक्षु बहनों की तरफ से गीतिका की प्रस्तुति की गई।

चातुर्मासिक कृतज्ञता के क्रम में मदनलाल सकलेचा, गौतम डोशी, कन्हैयालाल सिंघी, हस्तीमल हिरण द्वारा भावाभिव्यक्ति दी गई। प्रो. आनंद त्रिपाठी ने जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि 2 नवंबर को आयोजित इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि श्री श्री रविशंकर रहेंगे। संचालन मुनि श्री दिनेश कुमार जी ने किया।

आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन सानिध्य में त्रिदिवसीय जिण भासियं कार्यशाला का हुआ आगाज। संबोध यात्रा के साथ संघबद्ध जैन कार्यवाहिनी कोलकाता श्री चरणों में पहुँची।

जैन कार्यवाहिनी कोलकाता के तत्वावधान में जिण भासियं कार्यशाला का आगाज पूज्यप्रवर के सानिध्य में हुआ। मुनि श्री सत्य कुमार जी ने इणमेंव णिग्गंथं पावयणं सच्चं विषय पर तथा मुनि श्री सुधाकर कुमार जी ने उट्ठिए णो पमायए विषय पर सारगर्भित उद्बोधन दिया। प्रेक्षा फाउंडेशन के तत्वाधान में आठ दिवसीय अंतरराष्ट्रीय प्रेक्षा ध्यान के शिविर का आगाज हुआ

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