गांधीनगर, बैंगलोर चातुर्मास- वरुण वाणी
श्री गुजराती जैन संघ, गांधीनगर, बेंगलुरू में चातुर्मासार्थ विराजित श्रमण संघीय उपप्रवर्तक श्री पंकजमुनिजी म. सा. ने मंगलाचरण के साथ प्रवचन सभा का शुभारंभ किया एवं मधुर गायक परम पूज्य श्री रुपेशमुनिजी म. सा. ने गुरु पद्म अमर आरती के मधुर संगान के साथ सभा को भावविभोर कर दिया । तत्पश्चात दक्षिण सूर्य ओजस्वी प्रवचनकार प. पू. डॉ श्री वरुणमुनिजी म. सा. ने अपने मंगल उद्बबोधन में फरमाया कि यदि आप संत नहीं बन सकते तो कम से कम शांत अवश्य बने । जिस प्रकार सूर्य की कोई प्रशंसा करें या निंदा, सूर्य उससे अप्रभावित रहता है, इसी प्रकार क्रोध या आवेश आने पर मौन रहने या मन को शांत रखने से हम उसके दूरगामी दुष्प्रभावों से बच सकते हैं । मुनि श्री ने आगे फरमाया कि जैसे शर्ट का पहला बटन यदि गलत लग जाए तो बाकी के सारे बटन गलत ही लगेंगे । इसी प्रकार यदि आध्यात्म में हमारा पहला कदम गलत हो जाए तो हम अपनी राह से भटक सकते हैं और यदि पहला कदम सही रखें तो हम मुक्ति के पथ पर अग्रसर हो सकते हैं। यह पहला कदम है- सम्यक दर्शन।
सम्यक दर्शन के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए सबसे सीधा और सरल मार्ग है- भक्ति का मार्ग । कहा भी है *श्रद्धावानं लभ्ते ज्ञानम्* अर्थात् श्रद्धावन को ही ज्ञान की प्राप्ति होती है । श्रद्धा का अर्थ है विनय या विनम्रता । जिसमें विनम्रता होती है उसमें अहंकार नहीं होता । धन के साथ-साथ कभी-कभी हमें धर्म का भी अभिमान हो जाता हैं । हमारा यह सौभाग्य है कि हमारे अज्ञान रूपी अंधकार को मिटाने के लिए और ज्ञान के दीप जलाने के लिए हमारी नगरी में संत पधारे हैं । जहां सद्ज्ञान हमें सन्मार्ग दिखाता है, वही अहंकार हमें पतन के मार्ग की ओर ले जाता है। महाराजा दशार्णभद्र को भी प्रभु महावीर के दर्शन के लिए जाते समय अपनी विशाल चतुरंगिणी सेना और जनता को देखकर अभिमान हो गया था किंतु जैसे ही वह प्रवेश द्वार के समीप पहुंचे, पूरा लाव-लश्कर नदारद था, इसे देखकर उनका अहंकार टूटा और उन्होने संयम अंगीकार कर लिया। जहां समर्पण का भाव जगता है, वहां विनय का भाव स्वत: ही जागृत हो जाता है और ऐसी लघुता के आगे इंद्रदेव भी झुकते हैं ।
कहा भी है- झुकता वही है जिसमें कुछ जान है, अकड़पन तो खास मुर्दे की पहचान है। जब तक विनम्रता है तब तक अहंकार की खेती नहीं पनपती । अभिमानी व्यक्ति के समक्ष चाहे कितनी ही अच्छी बात कही जाएं किंतु उसके जीवन में किसी प्रकार का रूपांतरण नहीं होता । जिस प्रकार फटी हुई जब में पैसे नहीं टिकते, इसी तरह अहंकार की जेब में ज्ञान रूपी धन नहीं टिकता । बिना विनम्रता के ज्ञान की कोई सार्थकता नहीं । चाहे राजा हो या योगी, अग्नि हो या पानी, सभी अपनी मर्यादा में ही अच्छे लगते हैं । जब भी वे अपनी मर्यादा को लांगते हैं, तब विनाश होता है । जैसे फसल पकी हुई हो तो बरसात बुरी लगती है और घर में यदि लाश रखी हो तो बारात बुरी लगती है । जो मां अपनी संतति में विनय के संस्कारों का निर्माण करती है उसी को निर्वाण की प्राप्ति होती हैं ।
मधुर वक्ता श्री रुपेशमुनि जी म. सा. ने एक अत्यंत मधुर भजन की प्रस्तुति दी, जिससे सभी श्रोता भक्ति के भाव में निमग्न हो गए । प्रवचन के पश्चात सभा का कुशल संचालन संघ के अध्यक्ष श्री राजेश भाई मेहता ने किया । अंत में उपप्रवर्तक परम पूज्य श्री पंकज मुनि जी म. सा. ने मंगल पाठ के साथ सभा का विसर्जन हुआ।